Story created by Renu Chouhan

'किस व्यक्ति को कितने गहने पहनने चाहिए?'

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आपने अक्सर देखा होगा कि लोगों में दिखावा बहुत होता, वो दिखावे के चक्कर में बहुत ही ज्यादा बन ठन कर रहते हैं.

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चाणक्य ने अपनी नीति में ऐसे लोगों को लेकर एक वाक्य लिखा है 'विभवानुरूपमाभरणम्'.

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चाणक्य ने बताया कि अपनी धन-संपत्ति के अनुरूप ही व्यक्ति को आभूषण धारण करने चाहिए.


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यानी मनुष्य को अपने शरीर की सजावट या वेषभूषा उतनी ही करनी चाहिए जितना उसके पास धन हो.


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ऐसा नहीं होना चाहिए आप दिखाने के लिए जरूरत से ज्यादा आभूषण पहनें.


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क्योंकि अपनी स्थिति से बाहर जाकर शरीर को सजाने से मनुष्य के सम्मान में वृद्धि नहीं होती.


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मनुष्य को अपनी वेशभूषा देशकाल के अनुसार ही रखनी चाहिए.


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इसी से मिलता-जुलता एक हिंदी वाक्य भी काफी प्रसिद्ध है कि - 'ताते पैर पसारिए जाती लंबी सौर'.

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