Story created by Renu Chouhan

पढ़ाई में मन न लगे तो पढ़ लें चाणक्य की कही ये 1 बात

Image Credit: Openart

चाणक्य नीति में आचार्य ने अपनी नीति में लिखा है "सुखार्थी वा त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्। सुखार्थिन कुतो विद्या विद्यार्थिान: कुतो सुखम्।।"

Image Credit: Unsplash

इस वाक्य में चाणक्य ने बताया है कि यदि सुख की इच्छा हो तो विद्या अध्ययन का विचार छोड़ देना चाहिए.

Image Credit: Unsplash

और यदि विद्यार्थी विद्या सीखने की इच्छा रखता है तो उसे सुख और आराम का त्याग कर देना चाहिए.


Image Credit: Unsplash

क्योंकि सुख चाहने वाले को विद्या प्राप्त नहीं हो सकती और जो विद्या प्राप्त करना चाहता है, उसे सुख नहीं मिल सकता.


Image Credit: Unsplash

यानी चाणक्य के मुताबिक विद्या प्राप्ति के समय विद्यार्थी को सुख-सुविधाओं की आशा नहीं करनी चाहिए.


Image Credit: Unsplash

कठोर तप से ही विद्या की प्राप्ति हो सकती है.


Image Credit: Unsplash

यदि विद्यार्थी विद्या में पारंगत होना चाहता है तो उसे निरंतर अभ्यास करना पड़ता है, जो सुख से नहीं हो सकता है.


Image Credit: Unsplash

क्या कठिनता से मिलने वाली कोई भी वस्तु मूल्यवान नहीं होती? अत: विद्यार्थी को सुख की आशा ही छोड़ देनी चाहिए अन्यथा उसे विद्या प्राप्त नहीं हो सकती.


Image Credit: Unsplash

क्योंकि भोग और ज्ञान परस्पर विरोधी हैं.

और देखें

हमें हिचकी क्यों आती है?

1 लकड़ी का कटोरा और बूढ़ा आदमी

घमंडी लाल गुलाब का फूल

क्या है पेटीकोट कैंसर?

Click Here