Story created by Renu Chouhan
पढ़ाई में मन न लगे तो पढ़ लें चाणक्य की कही ये 1 बात
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चाणक्य नीति में आचार्य ने अपनी नीति में लिखा है "सुखार्थी वा त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्। सुखार्थिन कुतो विद्या विद्यार्थिान: कुतो सुखम्।।"
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इस वाक्य में चाणक्य ने बताया है कि यदि सुख की इच्छा हो तो विद्या अध्ययन का विचार छोड़ देना चाहिए.
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और यदि विद्यार्थी विद्या सीखने की इच्छा रखता है तो उसे सुख और आराम का त्याग कर देना चाहिए.
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क्योंकि सुख चाहने वाले को विद्या प्राप्त नहीं हो सकती और जो विद्या प्राप्त करना चाहता है, उसे सुख नहीं मिल सकता.
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यानी चाणक्य के मुताबिक विद्या प्राप्ति के समय विद्यार्थी को सुख-सुविधाओं की आशा नहीं करनी चाहिए.
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कठोर तप से ही विद्या की प्राप्ति हो सकती है.
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यदि विद्यार्थी विद्या में पारंगत होना चाहता है तो उसे निरंतर अभ्यास करना पड़ता है, जो सुख से नहीं हो सकता है.
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क्या कठिनता से मिलने वाली कोई भी वस्तु मूल्यवान नहीं होती? अत: विद्यार्थी को सुख की आशा ही छोड़ देनी चाहिए अन्यथा उसे विद्या प्राप्त नहीं हो सकती.
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क्योंकि भोग और ज्ञान परस्पर विरोधी हैं.
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