बच्चों की नींद को कैसे प्रभावित कर रही है डिजिटल तकनीक

Byline: Shikha Sharma

19/07/2024

डिजिटल होते समाज का सबसे ज्‍यादा असर बच्‍चों पर देखने को मिल रहा है. दिन और रात फोन, लैपटॉप पर समय बिताने के चलते बच्‍चों की नींद पूरी नहीं हो पाती.

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स्मार्टफोन, टैबलेट या लैपटॉप से निकलने वाली ब्‍लू लाइट नींद को कंट्रोल करने वाले हार्मोन मेलाटोनिन के प्रोडक्‍शन को रोकती है. 

रात को स्क्रीन देखने से बच्चों को सोने में देरी हो सकती है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि स्क्रीन एक्टिविटी उत्तेजना पैदा करती है, जिससे दिमाग शांत नहीं हो पाता.

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रात को अंधेरे में फोन देखने पर इसकी ब्राइटनेस का सीधा असर बच्‍चों की आंखों के रेटिना पर पड़ता है.

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अधिक समय तक डिजिटल तकनीक इस्‍तेमाल करने से बच्‍चे शारीरिक रूप से थकते नहीं है, जिसके परिणामस्‍वरूप उनको नींद नहीं आती.

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अधिक समय तक फोन/लैपटाप पर काम करने से आंखों में धुंधलापन आने लगता है. इससे आंखों में दर्द और खुजली जैसी समस्‍याएं भी हो सकती हैं.

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फोन पर गेम्‍स जैसी सुविधाएं बच्‍चों को भ्रमित करती हैं. कुछ मामलों में तो डिप्रेशन जैसी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को विकसित होते देखा गया है.

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ऐसे में बच्‍चों को तकनीक का कितना और कब इस्‍तेमाल करना है, ये उनके माता-पिता को तय करना होगा. डिजिटल युग में अपडेट रहने का अर्थ स्‍वास्‍थ्‍य से समझोता नहीं है.

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