महाराणा प्रताप : जंगलों में रहे, लेकिन मुगलों के सामने कभी झुके नहीं

Story created by Renu Chouhan

09/05/2025

"रण बीच चौकड़ी भर-भर कर, चेतक बन गया निराला था,राणाप्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था." ये पंक्तियां हिंदी कवि श्याम नारायण पांडेय ने एक घोड़े के लिए लिखी थीं.

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ये घोड़ा और कोई नहीं बल्कि मेवाड़ के महाराजा राणा प्रताप का 'चित्तौड़ का चेतक' था.

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लेकिन आज यानी 9 मई 2025 को महाराणा प्रताप की जयंती है, इस मौके पर जानिए इस शूरवीर के बारे में खास बातें.

महाराणा प्रताप को मेवाड़ का आत्मसम्मान बचाए रखने के लिए जाना जाता है.

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वो स्वतंत्रता प्रेमी थे, इसीलिए मुगलों के सामने कभी नहीं झुके.

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महाराणा प्रताप और अकबर के सेनापति मान सिंह के बीच हल्दीघाटी का युद्ध (1576) हुआ था.

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युद्ध भयंकर था, राणा प्रताप को जंगलों में रहकर संघर्ष करना पड़ा, लेकिन उन्होंने मेवाड़ का आत्मसम्मान नहीं छोड़ा.

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उनका घोड़ा चित्तौड़ का चेतक भी उतना ही वीर था, क्योंकि वो खुद घायल होने के बाद भी राणा प्रताप को युद्ध से बाहर निकाल ले गया.

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बता दें, महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ (वर्तमान राजस्थान) में  9 मई 1540 को हुआ था.

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जब अधिकांश हिंदु राजाओं ने मुगलों के सामने घुटने टेक दिए थे, वहीं राणा प्रताप अपनी पूरी जिंदगी लड़ते रहे.

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हल्दीघाटी का युद्ध के बाद उनका और उनके परिवार का जीवन जंगलों और पहाड़ों में बीता.

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उनकी अंतिम सांस तक मुगलों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा और 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप का निधन हो गया.

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