Story created by Renu Chouhan
कठोर वाणी बोलने के लिए चाणक्य ने कही ये बात
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चाणक्य नीति में एक वाक्य है "अग्नि दाहादपि विशिष्टं वाक्पारुष्यम्".
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इस वाक्य में चाणक्य ने लिखा है कि कठोर वाणी आग से जलने से भी अधिक दुखदायी होती है.
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कहा जाता है कि तलवार का घाव भर जाता है लेकिन कठोर वाणी का घाव दिल पर सदा के लिए अंकित रहता है.
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कठोर बातें बोलना एक प्रकार का व्यसन यानी लत है. अविवेकी मनुष्य क्रोधित होता है तो उसकी वाणी भी कठोर हो जाती है.
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तब वह बिना सोचे-समझे ऐसी बातें कहने लगता है जो दूसरों के हृदय में सदा के लिए चुभती रहती है.
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इसका अर्थ यह है कि कठोर वाणी भविष्य में होने वाले विवादों का बीज है.
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इसलिए संत-महात्माओं ने कहा है कि मनुष्यों को कटु वाणी से बचना चाहिए.
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मधुर वाणी से व्यक्ति अपने शत्रुओं को भी मित्र बना सकता है.
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