Story created by Renu Chouhan
कभी भी अपने धन से संतुष्ट क्यों नहीं होना चाहिए?
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आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में एक वाक्य के जरिए धन के बारे में बताया है.
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वाक्य में चाणक्य ने लिखा "अर्थतोषिणं श्री: परित्यजति".
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इस वाक्य में चाणक्य ने बताया जो राजा थोड़े से धन से संतुष्ट हो जाता है, राज्य लक्ष्मी उसे त्याग देती है.
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यानी राजा को अपने राजकोष से कभी भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए.
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यदि वह अपने अपर्याप्त साधनों से संतुष्ट होकर बैठ जाएगा तो राज्य निर्धन और श्रीहीन होकर नष्ट हो जाएगा.
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इसे आम आदमी भाषा में समझें तो अपने धन से कभी भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए.
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ऐसा करना से आपकी और धन कमाने की इच्छा खत्म हो जाती है.
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धन कमाने की इच्छा कम होना यानी घर में लक्ष्मी का थम जाना, ऐसे ग्रोथ रुक जाती है.
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इसीलिए इंसान में हमेशा धन कमाने की ललक होनी चाहिए, तभी वो नए अवसरों को तलाशेगा.
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