आपने अक्सर सुना होगा कि इस्लाम धर्म में साल में दो बार ईद का त्योहार मनाया जाता है.
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एक ईद-उल-फितर और दूसरी ईद-उल-अजहा, इन दोनों ही ईद के बीच डेढ़ से दो महीनों का फर्क होता है.
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यानी सबसे पहले मनाई जाती है मीठी ईद, जिसे ईद-उल-फितर कहते हैं. मीठी ईद रमजान के महीने के आखिरी दिन मनाई जाती है.
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इसके डेढ़ से दो महीने बाद ईद-उल-अजहा मनाई जाती है, जिसे बकरीद भी कहा जाता है.
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मीठी ईद को लेकर मान्यता है कि 624 ईस्वी में पैदम्बर हजरत मोहम्मद ने बद्र के युद्ध में जीत हासिल की थी, जिसकी खुशी में मिठाइयां बांटी गईं. और ऐसे मीठी ईद की शुरुआत हुई.
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वहीं, बकरीद यानी ईद-उल-अजहा के दिन को कुर्बानी के दिन के तौर पर मनाया जाता है.
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मान्यता है कि अल्लाह ने एक दिन हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज़ की कुर्बानी मांगी, और उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान करने का फैसला किया.
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लेकिन अपने बेटे को कुर्बान होते वो देख नहीं सकते थे, इसीलिए उन्होंने आंखों पर पट्टी बांध ली थी, लेकिन जब आंखें खोली तो बेटे के जगह एक मेमने का सिर था.
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ऐसे ही हर साल बकरीद के मौके पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है.
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