कबीर दास के 10 दोहे, जो 500 साल बाद भी हैं प्रसिद्ध
Story created by Renu Chouhan
11/06/2025 कबीर दास जी ने साधारण बोलचाल की भाषा में अपने ये दोहे 15वीं शताब्दी (लगभग 1440–1518 ई.) के बीच लिखे थे.
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अर्थ - जो काम कल करना है, उसे आज ही कर लो, और जो आज करना है, उसे अभी करो. समय कभी नहीं रुकता — जीवन क्षण भर में बदल सकता है.
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अर्थ - जब मैंने दूसरों में बुराई खोजी, तो कोई बुरा नहीं मिला. लेकिन जब मैंने खुद को टटोला, तो पाया कि सबसे बड़ा दोष मुझमें ही था.
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अर्थ - सिर्फ किताबें पढ़कर कोई ज्ञानी नहीं बनता. सच्चा ज्ञान प्रेम, करुणा और अनुभव में है.
अर्थ - अगर केवल हाथ की माला फेरने से मन शुद्ध नहीं होता, तो असली साधना मन को बदलना है - बाहरी नहीं, भीतरी जप ज़रूरी है.
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अर्थ - लोग दुख में भगवान को याद करते हैं, लेकिन सुख में नहीं. अगर सुख में भी सुमिरन करें, तो दुख कभी आए ही नहीं.
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अर्थ - प्रभु! इतना दीजिए जिससे मेरा और मेरे अतिथि का गुज़ारा हो जाए.
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अर्थ - कबीर समाज के बीच खड़े हैं, सबके लिए शुभकामना करते हैं — न किसी से लगाव, न वैर.
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अर्थ - जब ‘मैं' था, तब भगवान नहीं दिखे. अब 'मैं' हट गया, तो भगवान ही भगवान हैं.
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अर्थ - भगवान रूठें तो गुरु संभाल लेंगे, पर अगर गुरु रूठ गए तो कोई ठौर नहीं.
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अर्थ - जैसे आंख में पुतली होती है, वैसे ही भगवान हमारे भीतर हैं — लेकिन लोग उन्हें बाहर खोजते हैं.
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