चाणक्य ने इंसानों को आर्थिक रूप से या फिर जीवन को सही तरह से जीने के बारे में हर बार बताया है.
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जैसे उन्होंने एक श्लोक में बताया कि कैसे घर में माता लक्ष्मी खुद ब खुद आकर निवास करने लगती हैं.
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वो श्लोक है 'मूर्खा यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसच्चितम्। दम्पत्ये: कलहो नास्ति तत्र श्री: स्वयमागता।।'.
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इस श्लोक का मतलब है कि जहां मूर्खों की पूजा नहीं होती. जहां अन्न आदि काफी मात्रा में इकट्ठे रहते हैं, जहां पति-पत्नी में किसी प्रकार की कलह, लड़ाई-झगड़ा नहीं, ऐसे स्थान पर लक्ष्मी स्वयं आकर निवास करने लगती हैं.
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इस अर्थ को और आसान शब्दों में चाणक्य ने समझाया कि जो लोग- देश या देशवासी मूर्ख लोगों के बजाय गुणवानों का आदर-सम्मान करते हैं...
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अपने गोदामों में भली प्रकार अन्न का संग्रह करके रखते हैं, जहां के लोगों में घर-गृहस्थी में लड़ाई-झगड़े नहीं, मतभेद नहीं, उन लोगों की संपति अपने-आप बढ़ने लगती है.
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