साल 2021 में घरेलू शेयर बाजार ने नई ऊंचाइयां छुईं, लेकिन भारतीय रुपये के लिए साल का अंत बुरा रहने वाला है. पिछले कुछ कारोबारी हफ्तों में विदेशी निवेशकों के रुख ने भारतीय रुपये की स्थिति कमजोर कर दी है. दरअसल, एक रिपोर्ट के मुताबिक, रुपया इस साल एशिया का सबसे खराब परफॉर्मेंस वाली करेंसी रह सकता है. विदेशी निवेशकों ने बाजार से लगभग 4 बिलियन डॉलर की पूंजी निकाल ली है, जिससे कि रुपये की कीमत में इस तिमाही में 2.2% गिर गई है.
अगर मंगलवार को रुपये की चाल की बात करें तो आज इसमें तेजी दिखी है. विदेशी बाजारों में अमेरिकी मुद्रा की कमजोरी और घरेलू शेयर बाजारों में तेजी के चलते भारतीय रुपया मंगलवार को शुरुआती कारोबार में 17 पैसे मजबूत होकर 75.73 पर पहुंच गया. कारोबारियों ने कहा कि हालांकि कच्चे तेल की कीमतों में तेजी ने रुपये की बढ़त को सीमित किया.
Bloomberg की एक रिपोर्ट के मुताबिक, Goldman Sachs Group Inc. और Nomura Holdings Inc. जैसी प्रतिष्ठित रेटिंग एजेंसियों ने भारत के आउटलुक के लिए अपनी रेटिंग घटाई थी, जिसके बाद विदेशी निवेशकों ने बाजार से बड़ी मात्रा में पैसा निकाला. एजेंसियों ने बाजार में बढ़ते मूल्यांकन का हवाला दिया था. वहीं रिपोर्ट में केंद्रीय रिजर्व बैंक की नीति का फेडरल रिजर्व बैंक की नीति से अलग होने के चलते भी रुपये की अपील पर असर पड़ा है.
इस रिपोर्ट में QuantArt Market Solutions के एक्सपर्ट्स का हवाला देते हुए बताया गया है कि रुपया इस वित्त वर्ष के आखिरी तिमाही यानी मार्च, 2022 के अंत तक गिरकर 78 डॉलर प्रति रुपये की कीमत पर आ सकता है. इसके पहले इसका निचला स्तर अप्रैल, 2020 में 76.9088 पर था. ब्लूमबर्ग ने अपने एक ट्रेडर्स और एनालिस्ट्स सर्वे में यह अनुमान जताया था कि रुपये की कीमत 76.50 डॉलर रह सकती है. ऐसी आशंका है कि रुपया इस साल 4 फीसदी नीचे गिर सकता है. यह इसका गिरावट में लगातार चौथा साल होगा.
इक्विटी बाजार में और गिरावट की आशंका है. वहीं, बॉन्ड बाजार से भी इस तिमाही में 587 मिलियन डॉलर निकाले गए हैं. भारत का ट्रेड डेफिसिट भी बढ़ गया है. हालांकि मार्केट एनालिस्ट्स का मानना है कि अगली तिमाही में लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन और कुछ बड़ी कंपनियों के शेयरों की बिक्री से विदेशी निवेशकों का हिस्सा बढ़ने की उम्मीद है.