सरकारी बीमा कंपनी लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (LIC) में सरकार कम से कम अगले दो सालों तक अपनी हिस्सेदारी कम नहीं करने वाली है. आने वाले वक्त में कंपनी का आईपीओ आना है, स्टॉक एक्सचेंज पर कंपनी की लिस्टिंग होनी है, ऐसे में उसके पहले सरकार अपनी हिस्सेदारी कम नहीं करना चाहती क्योंकि इससे आईपीओ में हिस्सा ले रहे निवेशकों के रिटर्न पर असर पड़ सकता है.
सरकार का यह रुख संभावित निवेशकों के बीच जाहिर किया गया है. दरअसल, कई संभावित निवेशकों ने बीमा कंपनी में न्यूनत सार्वजनिक हिस्सेदारी के नियमों का पालन करने के लिए सरकारी हिस्सेदारी को घटाने पर केंद्र के प्लान की जानकारी चाही थी.
ऐसी आशंकाओं पर अपना रुख साफ करने के लिए केंद्र ने कहा है कि वो एलआईसी के शेयरों पर दबाव न बने, इसके लिए कम से कम अगले दो सालों के लिए अपनी हिस्सेदारी घटाने का पक्ष नहीं रखता है. सरकार ने निवेशकों को यह भी बताया है कि कंपनी के पास अगले दो सालों के लिए पर्याप्त पूंजी है.
सरकार को उम्मीद थी कि LIC के 31.6 करोड़ रुपये मूल्य के, यानी पांच प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने से वह 60,000 करोड़ रुपये जुटा सकेगी, और 2021-22 के लिए 78,000 करोड़ रुपये के संशोधित विनिवेश लक्ष्य को हासिल कर सकेगी. हालांकि सरकार पांच फीसदी से कुछ ज़्यादा हिस्सा बेचने पर विचार कर सकती है.
सिर्फ पांच प्रतिशत की हिस्सेदारी बेचने पर भी LIC का IPO भारतीय शेयर बाज़ार के इतिहास का सबसे बड़ा IPO होगा. लिस्ट हो जाने के बाद LIC का मार्केट वैल्यूएशन शीर्ष कंपनियों रिलायंस इंडिया लिमिटेड (RIL) और टाटा कन्सल्टेन्सी सर्विसेज़ (TCS) की टक्कर का होगा.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India या SEBI) के पास नए सिरे से काग़ज़ात जमा करवाए बिना LIC का IPO जारी करने के लिए सरकार के पास अब भी 12 मई तक का समय है.
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