मुहर्रम की शुरुआत के साथ, मुसलमान करबला की जंग को याद कर रहे हैं. इस युद्ध में इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों ने यज़ीद की सेना के खिलाफ अपनी जान दी. युद्ध के दौरान इमाम हुसैन का छह महीने का बेटा अली असगर भी शहीद हुआ, जिससे करबला की घटना और भी हृदयविदारक हो गई. करबला की जंग ने अत्याचार के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक स्थापित किया, जो आज भी लोगों को प्रेरित करता है.