संघ प्रमुख ने अणुव्रत न्यास निधि व्याख्यान में भारतीयता के मूल स्वभाव और विश्व की चुनौतियों पर अपनी बात रखी. मोहन भागवत ने भारतीयता को स्वयं का त्याग कर दूसरों की रक्षा करने वाली भावना बताया. भागवत ने कहा कि एक धर्म की हानि करके दूसरे धर्म का उत्थान संभव नहीं, ये हमारे पूर्वजों की सीख है.