डॉक्टरों की दवाइयों की पर्ची मुनाफे के आधार पर होती है, जिससे मरीजों को जरूरी जेनरिक दवाओं की बजाय महंगी ब्रांडेड दवाएं दी जाती हैं. जेनरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं के समान प्रभावी होती हैं, लेकिन उनकी कीमत ब्रांडेड दवाओं की तुलना में बहुत कम होती है. 2018 में 5.5 करोड़ भारतीय दवाइयों और इलाज के खर्च के कारण गरीबी रेखा के नीचे आ गए, जिनमें से अधिकांश पहले गरीब नहीं थे.