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उत्तराखंड चार छोटे धामों के लिए जाना जाता है. यहां यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे तीर्थ स्थल मौजूद हैं, जिन्हें छोटा चार धाम पुकारा जाता है. इनके दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचते हैं.
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बंदरपूंछ पर्वत के पश्चिमी छोर पर पवित्र यमुनोत्री धाम मौजूद है और परंपरागत रूप से यमुनोत्री को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव माना जाता है.
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यमुना नदी से जुड़े इस मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दी में करवाया था.
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यमुनोत्री मंदिर के पास गर्म पानी के कई कुंड मौजूद हैं. यहां आने वाले श्रद्धालु कुंड में चावल कपड़े में बांधकर कुछ मिनट तक छोड़ देते हैं.श्रद्धालु पके हुए इन पदार्थों को प्रसाद मानकर घर ले जाते हैं.
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कहा जाता है कि नेपाल के जनरल अमर सिंह थापा ने गंगोत्री मंदिर का निर्माण करवाया था.
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हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक राजा भगीरथ ही तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर लाए थे और इसलिए गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है.
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गंगा नदी गंगोत्री ग्लेशियर में मौजूद गोमुख से निकलती है और यह करीब 19 किलोमीटर की दूरी तय करती है.
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यह मंदिर दीवाली के बाद बंद कर दिया जाता है और फिर अक्षया तृतीया, यानी मई के महीने में दोबारा खोला जाता है.
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सेमवाल परिवार से जुड़े लोग इस मंदिर में पुजारियों की भूमिका निभाते हैं और ये सभी मुखबा गांव में रहते हैं.
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केदारनाथ प्राचीन काल से एक तीर्थस्थल रहा है. एक पौराणिक सूत्र के मुताबिक, महाभारत काल में इस मंदिर का निर्माण पौराणिक पांडव भाइयों ने करवाया था.
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केदारनाथ का सबसे पहला संदर्भ स्कंद पुराण में मिलता है, जिसका नाम केदार है, उस स्थान के रूप में, जहां शिव ने अपने उलझे हुए बालों से गंगा के पवित्र जल को छोड़ा.
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केदारनाथ उत्तराखंड में स्थित है और मंदाकिनी नदी के तट के करीब स्थित है. केदारनाथ मंदिर बर्फ और ज़्यादा ठंड के कारण सर्दी के महीनों में बंद रहता है.
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नवंबर से अप्रैल तक छह महीने के लिए भगवान केदारनाथ को उत्सव मूर्ति के साथ पालकी में गुप्तकाशी के पास उखीमठ पर लाया जाता है.
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कहा जाता है कि भगवान शंकर ने अलकनंदा नदी में शालिग्राम पत्थर से बने भगवान बद्रीनारायण के एक काले पत्थर की छवि की खोज की.
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आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ को एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में फिर स्थापित किया था.
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बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में मौजूद अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती है.
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बद्रीनाथ क्षेत्र को हिन्दू धर्मग्रंथों में बदरी या बद्रिकाश्रम के नाम से पुकारा जाता है और ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु इस स्थान पर ध्यानमग्न रहते हैं.
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