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भारत के विभिन्न हिस्सों में दशहरा अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है.
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मैसूर दशहरा दुनियाभर में प्रसिद्ध है. इस दिन देवी चामुंडेश्वरी ने राक्षस महिषासुर का वध किया था. इस दौरान शहर में ग्रैंड प्रोसेशन निकाला जाता है.
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यहां मुख्य आकर्षण मैसूरु महल में होने वाला स्पेशल दरबार है. समारोह में सैन्य परेड, एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक प्रदर्शन भी होता है.
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1637 में राजा जगत सिंह द्वारा शुरु इस दशहरा में भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में पड़ोसी गांवों के स्थानीय देवताओं और गणों को शामिल किया जाता है.
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यहां खास बात यह है कि रावण के पुतलों को जलाने के बजाय नदी के तट पर लंकादहन समारोह आयोजित किया जाता है.
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बथुकम्मा का अर्थ है मातृ देवी, सामने प्रकट हों. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में यह त्योहार भगवान गणेश की पूजा के साथ शुरू होता है.
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बथुकम्मा नवरात्रि से शुरू होकर महालय अमावस्या पर खत्म होता है. इस त्योहार को शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक भी मानते हैं.
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बस्तर का दशहरा 75 दिन तक चलता है. ये शहर अपनी प्राकृतिक और आदिवासी संस्कृति के साथ दशहरा सेलिब्रेशन के लिए भी मशहूर है.
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इस परंपरा की शुरुआत 13वीं शताब्दी के बेड डोंगर में बस्तर राजा पुरुषोत्तम देव ने की थी. ये परंपरा आज भी कायम हैं.
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दशहरा के मौके पर चेन्नई की सड़कों को कोलस से सजाया जाता है. (लकड़ी की पेडियों पर देवी-देवताओं की मूर्तियों की सरल स्तरीय व्यवस्था).
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इस त्योहार के समान संस्करणों को पड़ोसी राज्यों कर्नाटक (बॉम्बे हब्बा) और आंध्र प्रदेश (बोम्बा कोलुवु) में भी मनाया जाता है.
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वाराणसी रामलीला के लिए प्रसिद्ध है. 1800 में तत्कालीन महाराजा उदित नारायण सिंह के किले के बाहर रामलीला की शुरुआत की गई थी.
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इस दौरान अभिनेता रामायण महाकाव्य की गाथा का प्रदर्शन करते हैं.इस रामलीला के दौरान हज़ारों की संख्या में दर्शक मौजूद होते हैं.
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कूर्ग (कोडागु) की पहाड़ियों के बीच मनाए जाने वाले रंगीन, कार्निवाल जैसे त्योहार में मदिकेरी का दशहरा काफी फेमस है.
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मदिकेरी में 10 दिन तक दशहरा मनाया जाता है. यहां चार मंदिर हैं, जो देवी मरियम्मा (उत्सव को मरियम्मा उत्सव भी कहा जाता है) को समर्पित हैं.
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दिल्ली में दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है. इस दौरान कलाकारों द्वारा रामलीला प्रस्तुत की जाती है. रामलीला मैदान की रामलीला देशभर में प्रसिद्ध है.
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राजस्थान के कोटा में दशहरे का आयोजन 25 दिन तक होता है. इस मेले की शुरुआत महाराज दुर्जनशाल सिंह हाडा के शासनकाल में 1723 ईस्वी में हुई थी.
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यह परंपरा आज तक निभाई जा रही है. इस दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं. भजन-कीर्तन के अलावा कई प्रतियोगिताएं होती हैं.
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