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रवीश कुमार का प्राइम टाइम: बड़े लोन से नुकसान नहीं, छोटे लोन से इतना घाटा?

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अर्थव्यवस्था के सवाल पर आने से पहले सिस्टम के सवाल से गुजरना जरूरी है. यूनिवर्सिटीज ग्रांट्स कमीशन राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा करवाती है इसमें जो पास होता है उसे ही छात्रवृत्ति दी जाती है. 10 से 14 महीने हो गए हैं छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिली है. कितनी बार खबर छपी होगी मगर 14 महीनों में किसी को फर्क नहीं पड़ा. सिस्टम को पता है कि लोग इसे एक दिन की खबर समझकर आगे बढ़ जाएंगे. नया देखने की यही आदत दर्शक और पत्रकारिता को एक ही स्तर पर ला चुकी है. सिस्टम की यही थ्योरी काम आ जाती है जब किसी को जांच और सुनवाई के नाम पर कई सालों के लिए जेल में डाल दिया जाता है. उन्हें पता है कि खबर कितने दिन चलेगी.



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