रवीश कुमार का प्राइम टाइम: जीरो बजट फार्मिंग के लिए मिसाल बना ये गांव
प्रकाशित: जुलाई 11, 2019 09:32 PM IST | अवधि: 5:21
Share
क्या आप जानते हैं कि साफ़ पानी के लिए तरस रहा हमारा देश हर साल सौ खरब लीटर से ज़्यादा पानी निर्यात करता है और उसकी कोई क़ीमत भी नहीं लेता. इसमें से सौ ख़रब लीटर अकेले चावल के निर्यात की शक्ल में भारत से बाहर चला जाता है. चावल धान से निकलता है और एक किलो चावल के उत्पादन में ढाई हज़ार लीटर पानी लगता है. अब सोचिए चावल आप किस क़ीमत पर ख़रीदते हैं और इसकी क़ीमत होनी क्या चाहिए. चावल, गन्ना, कपास जैसी कई फ़सलें जिनपर पानी बहुत ज़्यादा लगता है. आज पानी को लेकर जो हालात हैं उसमें हमें इन फ़सलों के उत्पादन के पैटर्न को भी बदलना होगा. ऊपर से पानी तो बचाना ही होगा. पानी से तरसते राजस्थान का एक गांव पानी को बचाने के मामले में मिसाल बनकर उभरा है, उधर तेलंगाना का एक गांव है जो ज़ीरो फार्मिंग को लेकर मिसाल बना है. ज़ीरो फार्मिंग का मतलब है श्रम के अलावा बिना अतिरिक्त निवेश के फसल पैदा करना और धरती को रासायनिक खादों और कीटनाशकों के ज़हर से बचाना. देश के तीन कोनों जयपुर, कोलकाता और तेलंगाना के गांवों और खेतों से हमारी सहयोगियों हर्षा कुमारी सिंह, मोनीदीपा बनर्जी और उमा सुधीर की ये रिपोर्ट देखिए