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This Article is From Jul 19, 2018

सुन ले सरकार, पुल है तैयार : जब गांव वालों ने ख़ुद ही बना दिया पुल...

नीचे काली नदी का गहरा टॉक्सिक पानी और ऊपर तेज रफ्तार से चलती ट्रेन, जान हथेली पर लेकर इस पुल को पार करने के दौरान दो दर्जन से ज्यादा लोग मौत के घाट उतर चुके हैं.

सुन ले सरकार, पुल है तैयार : जब गांव वालों ने ख़ुद ही बना दिया पुल...
हापुड़: उत्तर प्रदेश के हापुड़ में एक ऐसा खूनी रेलवे ट्रैक है जिसपर दो दर्जन से ज्यादा मौतें होने के बावजूद जब पुल नहीं बना तो गांव वाले खुद ही पुल बनाने में जुट गए हैं. हापुड़ में काली नदी का खूनी पुल है. करीब ढाई सौ से ज्यादा ट्रेनें यहां से गुजरती हैं. नीचे काली नदी का गहरा टॉक्सिक पानी और ऊपर तेज रफ्तार से चलती ट्रेन, जान हथेली पर लेकर इस पुल को पार करने के दौरान दो दर्जन से ज्यादा लोग मौत के घाट उतर चुके हैं.

गजालपुर गांव के बुजुर्ग हरपाल ने काली नदी के रेलवे ट्रैक की वो जगह दिखाई जहां चार साल पहले उनकी बेटी, नाती और उनके दामाद की ट्रेन से कटकर मौत हो गई थी. हरपाल ने बताया, 'पता नहीं क्या सूझी इस रेलवे ट्रैक को पार करके उस पर जाने की. कुछ देर बाद हमें शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े मिले. क्या करें. देखते ही देखते सब खत्म हो गया.'

दरअसल गजालपुर, ददारपुर और श्यामपुर जैसे गांव में रहने वाले ग्रामीणों को काली नदी पर पुल न होने की वजह से 12 किमी घूम कर हापुड़ जाना पड़ता है. अगर वो इस 60 फीट के रेलवे ट्रैक को पार करके जाते तो केवल चार किमी की दूर तय करके हापुड़ पहुंच जाते हैं. यही वजह है कि मौत के इस रेलवे ब्रिज को पार करने की जब-जब कोशिश होती तब जान जाने का खतरा बढ़ जाता. गजालपुर गांव के निवासी सोनू ने बताया कि उनकी बहन और भांजी ट्रेन से कट गए हैं.

लेकिन दर्जनों मौतों के बावजूद जब सरकार 60 साल में 60 फीट का पुल नहीं बना पाई तो इन ग्रामीणों ने खुद काली नदी पर पुल बनाने की शुरुआत कर दी. बीते छह दिन से इसी तरह मजदूर बनकर ग्रामीण इस पुल को बनाने में जुटे हैं. पुल बनाने में घूंघट वाली महिलाओं से लेकर बुजुर्ग और नौकरी कर रहे लोग तक शामिल हैं. हालांकि पैसों की समस्या आड़े आ रही है लेकिन फिलहाल चंदे के चार लाख रुपए से पुल काफी हद तक बन चुका है.

गजालपुर गांव के समरपाल बताते हैं कि 'हम बस यही कहना चाहते हैं कि किसी नेता या जनप्रतिनिधि ने हमारा सहयोग नहीं किया. काफी दौड़ भाग की है, हमें लग रहा है कि हमारा गांव बलूचिस्तान में है.

VIDEO: ग्राउंड रिपोर्ट: 60 साल के इंतजार के बाद लोगों ने खुद ही बनाया पुल

जिला पंचायत सदस्‍य कृष्णकांत सिंह कहते हैं, 'गांव के दूसरी ओर इस सड़क से जाएंगे तो हापुड़ चार किमी है जबकि घूमकर जाने पर 12 से 15 किमी है. अब बच्चे भी पढ़ाई कर सकेंगे.'

गजालपुर गांव हापुड़ जिले के बॉर्डर पर है और इस पुल के दूसरी ओर अमरोहा जिला लगता है. यही वजह है कि तमाम लोगों के मारे जाने के बावजूद किसी भी नेता ने पुल नहीं बनाया.

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