'पर्यावरणविद अनुपम मिश्र'

- 5 न्यूज़ रिजल्ट्स
  • Blogs | विजय बहादुर सिंह |मंगलवार अप्रैल 11, 2017 09:32 PM IST
    अनुपम का जाना उनके घर-परिवार, स्वयं मेरे लिए भी उतनी बड़ी क्षति नहीं, जितनी इस दुनिया और वर्तमान सभ्यता के लिए है. पुराणों में जो हम भगीरथ आदि युगान्तरकारी महान पुरुषों के बारे में पढ़ते हैं, हमारे आज के जमाने में अनुपम उसी वंश और गोत्र के थे.
  • Blogs | चिन्मय मिश्र |शुक्रवार फ़रवरी 10, 2017 03:58 PM IST
    अनुपम जी का यूं पर्दा कर लेना बहुत भाया नहीं. उन्होंने जीवन में पहली बार कोई मनमानी की. मगर एक बार ऐसा करने का हक तो उन्हें भी है. आसन्न मृत्यु को इतनी सहजता और शांति से ग्रहण करने वाले को क्या संज्ञा दी जा सकती है? उन्हीं से कैंसर की खबर पाकर फोन हाथ में जम सा गया और आंखें सूख गईं. क्योंकि उनमें पानी लाने वाला अब डूब रहा था. मगर विश्वास था कि तूफान भी उनका हौसला तोड़ नहीं पाएगा क्योंकि उनकी तो नदी से दोस्ती है.
  • Blogs | प्रभाष जोशी |बुधवार दिसम्बर 21, 2016 07:44 PM IST
    प्रसिद्ध पर्यावरणविद अनुपम मिश्र पर यह लेख वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने 'अपने पर्यावरण का यह अनुपम आदमी' शीर्षक से 1993 में 'जनसत्ता' में लिखा था. इस आलेख को आज 'सत्‍याग्रह' ने प्रकाशित किया है. हम अपने पाठकों के लिए इसे 'सत्‍याग्रह' की अनुमति से प्रकाशित कर रहे हैं.
  • Blogs | रवीश कुमार |सोमवार दिसम्बर 19, 2016 09:43 PM IST
    सोचा नहीं था कि जिनसे ज़िंदगी का रास्ता पूछता था, आज उन्हीं के ज़िंदगी से चले जाने की ख़बर लिखूंगा. जाने वाले को अगर ख़ुद कहने का मौका मिलता तो यही कहते कि अरे मैं कौन सा बड़ा शख़्स हूं कि मेरे जाने का शोक समाचार दुनिया को दिया जाए.
  • Blogs | रवीश कुमार |सोमवार दिसम्बर 19, 2016 09:57 PM IST
    अनुपम मिश्र को खूब पढ़ा है. तीन-चार किताबों को कई बार पढ़ा है. जब भी किताबों से धूलों की विदाई करता हूं, एक बार याद कर लेता हूं. जब भी लगता है कि भाषा बिगड़ रही है तो 'गांधी मार्ग' और 'आज भी खरे हैं तालाब' पढ़ लेता था. उनकी भाषा हिंसा रहित भाषा थी, चिन्ता रहित भाषा थी, आक्रोश रहित भाषा थी. हम सबकी भाषा में यह गुण नहीं हैं. इसीलिए वे अनुपम थे, हम अनुपम नहीं हैं. वे चले गए हैं.
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