Blogs | प्रियदर्शन |सोमवार दिसम्बर 2, 2019 09:59 PM IST तेलंगाना रेप केस पर सदमे और गुस्से में आने से पहले सोचिए कि क्या आपके भीतर सदमे और गुस्से में आने का अधिकार बचा है? हम लगातार एक ऐसा समाज बना रहे हैं जो स्त्रियों, अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों के लिए लगभग अमानवीय हुआ जा रहा है. अगर सिर्फ़ स्त्रियों की ही बात करें तो वे हमारे समाज में उपभोग के सामान में बदली जा रही हैं. विज्ञापन उद्योग उनका धड़ल्ले से इस्तेमाल करता है, मनोरंजन उद्योग उनका ख़ूब खुल कर इस्तेमाल करता है. क्रिकेट और कारोबार तक की दुनिया में उनका एक सजावटी इस्तेमाल है.