Blogs | प्रियदर्शन |गुरुवार सितम्बर 14, 2017 01:00 PM IST हिंदी को सबसे ज़्यादा हिंदी प्रेमियों से बचाने की जरूरत है. हिंदी रक्षा का काम कुछ लोग उसी तरह करना चाहते हैं जैसे गोरक्षा का काम करते हैं. वे अचानक हिंदी से तमाम तद्भव, देशज-विदेशज शब्दों को हटाने की मांग करते हैं. कुछ अरसा पहले दीनानाथ बतरा के नेतृत्व में बनी एक कमेटी ने पाठ्य पुस्तकों से ऐसे शब्दों को हटाने की सिफ़ारिश की. यह सबसे ख़तरनाक मांग है. भाषाओं को सबसे ज़्यादा शुद्धतावाद मारता है.