UPelections: भले नहीं दिख रहा 'हाथी' का शोर, लेकिन जमीन पर BSP की पूरी तैयारी...

UPelections: भले नहीं दिख रहा 'हाथी' का शोर, लेकिन जमीन पर BSP की पूरी तैयारी...

इस बार चुनावों में सबसे पहले बसपा ने सभी प्रत्‍याशियों की घोषणा की.

नई दिल्‍ली:

सपा में घमासान और उसके बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन के चलते हाल-फिलहाल में मीडिया में सबसे ज्‍यादा चर्चा सपा, कांग्रेस और बीजेपी को ही मिलती रही है. इस बीच एक अन्‍य प्रमुख पार्टी बसपा के प्रचार और रणनीति को ज्‍यादा सुर्खियां नहीं मिल रही हैं. राजनीतिक विश्‍लेषकों का भी कहना है कि पिछले जुलाई-अगस्‍त तक मायावती की वापसी के कयास लगने शुरू हो गए थे लेकिन सितंबर से सपा में घमासान और उसके बाद कांग्रेस से गठबंधन होने एवं अखिलेश यादव की इमेज के उभरने से माना जाने लगा है कि यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होने जा रहा है. राजनीतिक विश्‍लेषकों की कयासबाजी में बसपा भले ही पिछड़ती दिख रही है, लेकिन तथ्‍यों के आधार पर यदि आंकड़ों को परखा जाए तो बसपा की चुनावी रणनीति अपने विरोधियों से कमजोर नहीं दिखती:

1. बसपा का दावा है कि उसने सबसे पहले यूपी में चुनावी तैयारियां पूरी कर ली थीं. उसने सबसे पहले अपने प्रत्‍याशियों की पूरी सूची जारी की. अन्‍य दलों में जहां सूची जारी होने के बाद एक से दूसरे दलों में दलबदलुओं की भगदड़ शुरू हुई, वहीं मायावती ने जब अपने प्रत्‍याशियों की सूची जारी की तो ऐसी नौबत नहीं आई. इससे यह बात निकलकर आ रही है कि बाकी दलों की तुलना में बसपा ने सबसे पहले अपनी चुनावी तैयारी पूरी की और इसके चलते प्रत्‍याशियों को सर्वाधिक प्रचार का मौका मिलेगा.

2. मायावती ने इस बार दलित-मुस्लिम(डीएम) सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले पर दांव खेला है. इसीलिए पार्टी ने सर्वाधिक 97 मुस्लिम प्रत्‍याशियों को टिकट दिया गया है और उसके बाद 87 दलित प्रत्‍याशियों को मैदान में उतारा है. सीटों के समीकरण के लिहाज से यदि देखा जाए तो 73 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 30 प्रतिशत से भी ज्‍यादा है. इसके अलावा 70 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 20-30 प्रतिशत है. बसपा का कहना है कि इन सीटों पर पार्टी ने प्रचार सबसे पहले शुरू कर दिया है. इसका लाभ बसपा को ही मिलेगा और सपा-कांग्रेस गठबंधन का खास असर मुस्लिम मतदाताओं पर नहीं होगा.

3. हालांकि बसपा का मानना है कि मीडिया उनको अपेक्षित तवज्‍जो नहीं दे रहा है लेकिन उनका कहना है कि इसकी भरपाई के लिए पार्टी ने सोशल मीडिया का सहारा लिया है. 2014 के लोकसभा चुनावों में बसपा की करारी हार के बाद पार्टी ने सोशल मीडिया के महत्‍व को समझा. अब सोशल मीडिया पर पार्टी के विचारों को पहुंचाने का जिम्‍मा सतीश मिश्र के दामाद को दिया गया है.

4. बसपा को उम्‍मीद है कि 2014 के आम चुनावों में मोदी लहर की वजह से जो उसका परंपरागत दलित वोट बैंक झटककर बीजेपी के खाते में चला गया था, अब नोटबंदी और मोदी लहर के कमजोर पड़ने से वापस बसपा की तरफ लौट आएगा.

5. बसपा का आकलन है कि गुजरात के उना कांड और हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रोहित वेमुला खुदकुशी केस के बाद यूपी का दलित वोटबैंक एकजुट होकर फिर से बसपा के पाले में खड़ा होगा.

6. बसपा अपने चुनाव प्रचार में कानून-व्‍यवस्‍था का मुद्दा प्रमुखता से उठा रही है. बसपा का दावा है कि मायावती के शासन में ही राज्‍य की कानून-व्‍यवस्‍था मजबूत रहती है और सपा के दौर में इस मोर्चे पर अराजक स्थिति उत्‍पन्‍न होती है.

7. मायावती ने कुछ समय पहले ही घोषणा कर दी थी कि अब सत्‍ता में आने की स्थिति में दलित अस्मिता के प्रतीक पार्कों और स्‍मारकों का निर्माण नहीं किया जाएगा और विकास पर ही पूरा जोर होगा. इसकी एक बड़ी वजह यह मानी जाती है कि इस मोर्चे पर वह अक्‍सर विरोधियों के निशाने पर रही हैं. इसलिए विरोधियों को जवाब देने के मकसद से मायावती की इस घोषणा को अहम माना जाता है.   

8. बीजेपी को घेरने के लिए सपा-कांग्रेस गठबंधन जहां 'बाहरी बनाम अपने लड़के' का नारा दे रहा है, वहीं बीएसपी ने 'अपनी बहन, बाहर का पीएम' नारा दिया है.

9. बसपा का मानना है कि बीजेपी ने अपना मुख्‍यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है. इसका सर्वाधिक फायदा बसपा को ही मिलेगा क्‍योंकि इससे अखिलेश के खिलाफ सत्‍ता-विरोधी लहर का फायदा मायावती के खाते में जाएगा. नतीजतन मायावती की मजबूत प्रशासक की छवि के चलते बीजेपी और सपा को वोट नहीं देने वाले अगड़ी जातियों के वोट भी मायावती को मिलेंगे.

10. चुनाव की घोषणा से पहले बीएसपी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की भी सुगबुगाहट थी लेकिन बीएसपी सुप्रीमो ने इस संभावना को इसलिए खारिज कर दिया क्‍योंकि उनका मानना है कि बीएसपी के वोट का फायदा तो दूसरे सहयोगी दल को मिल जाता है लेकिन उसके वोट का फायदा बीएसपी को नहीं मिलता.


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