विज्ञापन
This Article is From Dec 08, 2019

RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर जताई चिंता, कहा- सभी शक्तियां PMO के अधीन होना ठीक नहीं

एक मैगजीन में छपे एक आर्टिकल में राजन ने भारत की कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था को सुस्ती से बाहर निकालने के लिये अपने सुझाव दिये हैं.

RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर जताई चिंता, कहा- सभी शक्तियां PMO के अधीन होना ठीक नहीं
रघुरामराजन ने अर्थव्यवस्था को सुस्ती से बाहर निकालने के लिये अपने सुझाव दिये हैं
नई दिल्ली:

RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय ‘सुस्ती' के चंगुल में फंसी है और इसमें बेचैनी और अस्वस्थता के गहरे संकेत दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस समय अर्थव्यवस्था से जुड़े तमाम फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय से लिये जाते हैं और मंत्रियों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. इंडिया टुडे' मैगजीन में छपे एक आर्टिकल में राजन ने भारत की कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था को सुस्ती से बाहर निकालने के लिये अपने सुझाव दिये हैं. उन्होंने लगातार सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिये पूंजी क्षेत्र, भूमि और श्रम बाजारों में सुधारों को आगे बढ़ाने की अपील की है. इसके साथ ही उन्होंने निवेश और वृद्धि को बढ़ाने पर भी जोर दिया है. उन्होंने कहा कि भारत को विवेकपूर्ण तरीके से मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) में शामिल होना चाहिए ताकि कॉम्पटीशन बढ़ाया जा सके और घरेलू दक्षता को सुधारा जा सके. 

राजन ने इसमें लिखा है, 'यह समझने के लिए कि गलती कहां हुई है, हमें सबसे पहले मौजूदा सरकार के केन्द्रीकृत स्वरूप से शुरुआत करने की जरूरत है. निर्णय प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि इस सरकार में नये विचार और योजनायें जो भी सामने आ रही हैं वह सब प्रधानमंत्री के ईद-गिर्द रहने वाले लोगों और प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से जुड़े लोगों तक ही सीमित हैं.'
राजन ने लिखा है, 'यह स्थिति पार्टी के राजनीतिक एजेंडे और सामाजिक एजेंडा के हिसाब से तो ठीक काम कर सकती है. क्योंकि इस स्तर पर सभी चीजें साफ तरीके से तय हैं और इन क्षेत्रों में इन लोगों के पास विशेषज्ञता भी है. लेकिन आर्थिक सुधारों के मामले में यह इतने बेहतर तरीके से काम नहीं कर सकती है. क्योंकि इस मामले में टॉप लेवल पर कोई क्लीयर एजेंडा पहले से तय नहीं है, इसके साथ ही स्टेट लेवल के मुकाबले नेशनल लेवर पर अर्थव्यवस्था किस तरह से काम करती है इसके बारे में भी जानकारी का अभाव है.'

उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारें बेशक ‘अव्यवस्थित' गठबंधन थीं, लेकिन उन्होंने आर्थिक उदारीकरण के क्षेत्र में लगातार काम किया. राजन ने कहा, 'सत्ता का अत्यधिक केन्द्रीकरण, मजबूत और सशक्त मंत्रियों का अभाव और एक सरल और साफ दिशा वाली नजरिए की कमी से यह सुनिश्चित हुआ है कि कोई भी सुधार तब ही रफ्तार पकड़ता है जबकि पीएमओ उस पर ध्यान देता है, लेकिन जब पीएमओ का ध्यान दूसरे अहम् मुद्दों की तरफ रहता है तो ये मुद्दे पीछे रह जाते हैं.' उन्होंने लिखा है कि मोदी सरकार न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन (Minimum Government, Maximum Governance) के नारे के साथ सत्ता में आई थी. इस नारे का गलत मतलब लिया जाता है. इसका मतलब यह है कि सरकार चीजों को अधिक दक्षता से करेगी न कि लोगों और निजी क्षेत्र को अधिक करने की आजादी होगी. सरकार आटोमेशन की दिशा में बेहतर अभियान चला रही है. लाभार्थियों को सीधे उनके खाते में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. कई क्षेत्रों में सरकार की भूमिका बढ़ी है, सिकुड़ी नहीं है.'

राजन ने कहा कि आर्थिक सुस्ती को दूर करने की शुरुआत के लिए यह जरूरी है कि मोदी सरकार सबसे पहले समस्या को स्वीकार करे. उन्होंने कहा कि भारत आर्थिक मंदी के घेरे में है. ‘शुरुआती बिंदु यह है कि समस्या कितनी बड़ी है उसे समझा जाए, प्रत्येक आंतरिक या बाहरी आलोचक को राजनीतिक मंशा से प्रेरित नहीं बताया जाना चाहिये. यह मानना कि समस्या अस्थायी है और बुरी खबरों को दबाने और सुविधाजनक सर्वे के जरिये इसका हल किया जा सकेगा, यह सब बंद करना होगा.'भारत की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में घटकर 4.5 प्रतिशत रह गई है जो इसका छह साल का निचला स्तर है. मुद्रास्फीति बढ़ने से मुद्रास्फीतिजनित मंदी की आशंका पैदा हो गई है. यह ऐसी स्थिति होती है जबकि मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण मांग में कमी आने लगती है. 

राजन ने लिखा है कि निर्माण, रीयल एस्टेट और बुनियादी ढांचा क्षेत्र ‘गहरे संकट' में हैं. इसी तरह गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFC) भी दबाव में हैं. NBFC में संकट खड़ा होने और बैंकों में फंसा कर्ज बढ़ने की वजह से अर्थव्यवस्था में ऋण संकट पैदा हुआ है. राजन ने कहा है कि गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनियों यानी एनबीएफसी की संपत्तियों की गुणवत्ता की समीक्षा की जानी चाहिए. कॉरपोरेट और परिवारों को दिया गया कर्ज बढ़ रहा हैं. वित्तीय क्षेत्र के कई हिस्से गंभीर दबाव में हैं. 

बेरोजगारी के मामले में उन्होंने कहा कि युवाओं के बीच यह बढ़ रही है. इससे युवाओं के बीच असंतोष भी बढ़ रहा है. ‘‘घरेलू उद्योग जगत नया निवेश नहीं कर रहा है और यह स्थिति इस बात का पुख्ता संकेत देती है कहीं कुछ बहुत गलत हो रहा है.''राजन ने भूमि अधिग्रहण, श्रम कानूनों, स्थिर कर और नियामकीय प्रशासन, कर्ज में फंसे डेवलपर्स का दिवाला प्रक्रिया के तहत तेजी से समाधान, दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बनाये रखना और किसानों को जरूरी सामान और वित्त सुविधायें उपलब्ध कराना जरूरी है. राजन ने यह भी कहा कि सरकार को मध्यम वर्ग के लिये व्यक्तिगत आयकर की दरों में कटौती से फिलहाल परहेज करना चाहिये और अपने अहम् वित्तीय संसाधनों का उपयोग ग्रामीण गरीबों को मनरेगा जैसी योजनाओं के जरिये समर्थन देने के लिये करना चाहिये. 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा- अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये आयकर दरों में होगा सुधार

देश की अर्थव्यवस्था को लेकर अब आया कुमार मंगलम बिड़ला का बयान, कहा- हम रसातल के करीब पहुंच गए

साल 2022 तक भारत का 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना असंभव: IIM-I निदेशक

Video: सरकार जिस तरह से GDP को दिखा रही है उसमें संदेह: पी. चिदंबरम

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीख बदलवाने वाला बिश्नोई समाज कब और कैसे बना?
RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर जताई चिंता, कहा- सभी शक्तियां PMO के अधीन होना ठीक नहीं
कोलकाता: तिरंगा ले पुलिस की बौछार में खड़े वायरल बाबा आए सामने, खोला इशारे का राज
Next Article
कोलकाता: तिरंगा ले पुलिस की बौछार में खड़े वायरल बाबा आए सामने, खोला इशारे का राज
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;