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घर से निकलने पर लोग देते थे ताने, लखपति बनते ही मिसाल बनीं ये महिला क्रिकेटर

नजमा खान और तनिशा सिंह युवा महिला क्रिकेटरों के लिए बनीं मिसाल गई हैं.

घर से निकलने पर लोग देते थे ताने, लखपति बनते ही मिसाल बनीं ये महिला क्रिकेटर
भारत के होनहार बेटियों की हो रही है सराहना
  • दिल्ली प्रीमियर लीग की नीलामी में 83 महिला खिलाड़ियों की बोली लगी, जिसमें नजमा खान और तनिशा सिंह सबसे अधिक रकम हासिल कर मिसाल बनीं.
  • नजमा खान ने घरेलू क्रिकेट में लगातार प्रदर्शन कर 12.50 लाख रुपये की इनामी राशि पाई और टीम इंडिया में खेलने का सपना संजोया.
  • तनिशा सिंह को 13 लाख रुपये मिले, उन्होंने कई कोचों की मदद से बैटिंग और बॉलिंग में बेहतर प्रदर्शन कर अपनी प्रतिभा साबित की.
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हाल ही में दिल्ली प्रीमियर लीग की नीलामी में 83 महिला खिलाड़ियों की बोली लगी. लेकिन जिन दो खिलाड़ियों ने इस नीलामी में सबसे ज्यादा रकम हासिल कीं वो कई वजहों से मिसाल बन गई हैं. एक गुर्जर तो दूसरी मुसलमान समाज से आती हैं. दोनों को क्रिकेट मैदान तक पहुंचने से पहले अच्छे खासे विरोध का सामना करना पड़ा. लेकिन अब उनके समाज के भी लोग उन्हें सराहते नहीं थक रहे.

एक साथ कुरान और मेडल्स

दिल्ली के बाहरी इलाके छत्तरपुर के एक छोटे-से घर में मेडल्स का ढेर लगा है. क्रिकेटर नजमा खान ने इन मेडल्स के बीच कुरान को रखा है. क्रिकेट उनके लिए पूजा या इबादत का दूसरा नाम है. 29 साल की नजमा लगातार घरेलू क्रिकेट में कमाल ढाती रही हैं. लेकिन उनकी किस्मत अब जाकर रंग लाई है. अपनी मेहनत और ऑलराउंड खेल ने उन्हें उस मुकाम पर पहुंचाया है जहां दिल्ली प्रीमियर लीग की नीलामी में उन्हें 12.50 लाख रुपये की इनाम मिली है. नजमा के लिए ये पैसे जरूरत तो पूरा कर ही रहे हैं आगे बढ़ने का हौसला और रास्ता भी दिखा रहे हैं.

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नॉर्थ दिल्ली स्ट्राइकर्स की नज़मा खान बताती हैं, 'मेरे लिए खेल और इबादत एक ही चीज है. मेरे भाई की शादी में ये कुरान मुझे मिला और मैंने इसे अपने मेडल्स के साथ रखा है. मेरा सपना है मैं सबसे ऊंचे स्तर तक खेलूं. टीम इंडिया की जर्सी पहनूं और युवाओं के लिए रोल मॉडल बनूं.'

नजमा खान के पिता इसराइल खान कहते हैं, 'हमारे मुसलमानों में बहुत मुश्किल है कि आठवीं के बाद पढ़ाएं. लेकिन मैं खुद पढ़ा-लिखा हूं. मैं क्रिकेटर भी रहा हूं. मेरा सपना और बेटी की चाहत है कि क्रिकेट खेले. इसलिए मैंने किसी की कोई परवाह नहीं की. रिश्तेदार मना करते थे कि इसे लड़कों में मत खेलने दो. कहीं भी जाते थे तो रिश्तेदार कहते थे कि क्या अकेली लड़की लड़कों में खेलती है. लेकिन अब नजरिया बदलने लगा है.'

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'घर से बाहर निकाले जाने का था डर'

मयूर विहार में रहनेवाली और सरदार पटेल स्कूल में पढ़ीं तनिशा सिंह को दिल्ली प्रीमियर लीग में 13 लाख रुपये की सबसे बड़ी रकम हासिल हुई है. तनिशा के पिता महेन्दर सिंह बताते हैं कि टीम इंडिया की कई क्रिकेटर्स ने तनिशा के टैलेंट की तारीफ की है और उम्मीद जताई है कि ये आगे बड़ा नाम बना सकती हैं.

साउथ दिल्ली सुपरस्टार की तनिशा सिंह कहती हैं, 'माई ड्रीम इज टू प्ले फॉर इंडिया, वर्ल्ड का बेस्ट ऑलराउंडर बनूं, बैटिंग और बॉलिंग दोनों में अच्छा करूं. मुझे कई कोच ने मेरा खेल तराशने में मदद की है. सुरजीत सर, अजय सर, राजस्थान रॉयल्स के दिशांत सर, डीडीसीए के कोच और कई लोगों ने बहुत मदद की है. मैं सबका शुक्रिया भी अदा करना चाहती हूं.'

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'घर में अब भी महिलाएं बड़ा घूंघट डालती हैं'

मयूर विहार की 22 साल की तनिशा को भी ऐसे ही विरोध का सामना करना पड़ा है. तनिशा की मां योगिता सिंह कहती हैं, 'हम गुर्जर समाज से आती हैं. हमारे यहां लंबा घूंघट करना पड़ता है. हमारे घरों की लड़कियां बाहर नहीं निकलतीं. हमारे यहां लड़कियों ने कभी नौकरी नहीं की. रिश्तेदार शुरू में तो सख्त खिलाफ हो गए. अब इनके दादाजी तो पूरे गांव में तनिशा की फख्र से तस्वीर दिखाते हैं.'

दिल्ली प्रीमयिर लीग की 83 खिलाड़ियों की नीलामी में ऑलराउंडर तनिशा और नजमा ने बाजी मार ली. लेकिन दूसरी कई लड़कियों की तरह इनके लिए मैदान पहुंचना और वहां टिककर नाम बनाना आसान नहीं रहा. नजमा को एक आम मुसलमान लड़कियों जैसी कई मुश्किलें आईं तो गुर्जर परिवार से आनेवाली तनिशा भी रिश्तेदारों के विरोध के बीच डटी रहीं. वैसे अब जब नाम बनने लगा है तो वही मुहल्ले के लोग और रिश्तेदार तारीफ भी करने लगे हैं.

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'बिटिया के सपने के आगे सब हारे'

तनिशा के पिता महेन्दर सिंह सरदार पटेल स्कूल में ही काम करते हैं. वो कहते हैं, 'जब बिटिया ने नौवीं में कहा कि वो क्रिकेट ही खेलना चाहती है तो मैंने उसे प्रोत्साहित किया. घर से निकाले जाने का भी डर रहा. लगभग अपने समाज से अलग-थलग भी पड़ गए. लेकिन अब सब खुश हैं. मेरा तो एक ही सपना है कि बिटिया इंडिया खेले. वो बहुत मेहनत करती है तो ये ही सपना है. बस.'

इन लड़कियों के मां-बाप जीतनी ही खुशी गार्गी कॉलेज में बरसों से चल रहे आरपी अकादमी के कोच सुरजीत सिंह को है. ये दोनों लड़कियां यहीं ट्रेनिंग करती हैं. इस अकादमी में खेल रही संभवत: सबसे ज्यादा तकरीबन दस खिलाड़ियों को DPL ने लखपति बना दिया है. अब इसका असर दिल्ली सहित देश भर की महिला क्रिकेट पर भी पड़ता दिख रहा है.

'पहले लड़कियों को बुलाना पड़ता था, अब पैसे देकर आती हैं'

आरपी क्रिकेट अकादमी के वेटरन कोच सुरजीत वर्मा कहते हैं, 'दिल्ली प्रीमियर लीग या DPL महिला क्रिकेट में वरदान बनकर आया है.' वो कहते हैं, 'सर मैं आपको वो टाइम बताता हूं जब हम लड़कियों को ढ़ूंढते थे. हम कहते थे कि हम बैट देंगे, बॉल देंगे, आप क्रिकेट खेलो तो हम गार्गी कॉलेज को चैंपियन बना देंगे. बदलाव ये आया है कि अब ये लड़कियां पैसे देकर रजिस्ट्रेशन करवा रही हैं.'

बात इतनी सी नहीं कि डीपीएल ने कुछ गरीब और मध्यम वर्ग के परिवार की लड़कियों को लखपति बना दिया है. बड़ी बात ये है कि इन जैसी बीसों लीग ने देशभर की लाखों लड़कियों के सपने बड़े कर दिए हैं और उनके लिए यहां से टीम इंडिया तक पहुंचने का रास्ता खोल दिया है. अब दिल्ली के दूर दराज के इलाकों की लड़कियां कई सारे बंधन को तोड़ने और सपना देखने का हौसला रखने लगी हैं, सपना देखने लगी हैं.

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