थोक मूल्य मुद्रास्फीति लगातार 16वें महीने शून्य से नीचे रही और खाद्य उत्पादों विशेष तौर पर सब्जियों और दालों के सस्ते होने से यह फरवरी माह में शून्य से 0.91 प्रतिशत नीचे रही। मुद्रास्फीति नीचे बने रहने से उत्साहित भारतीय उद्योग जगत ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से नीतिगत ब्याज दर में कटौती की मांग की है, ताकि औद्योगिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने में मदद मिल सके। औद्योगिक उत्पादन नवंबर से घट रही है।
कुछ खाद्य और पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में गिरावट से फरवरी में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति शून्य से 0.91 प्रतिशत नीचे रही। एक साल पहले यह शून्य से 2.17 प्रतिशत नीचे थी। मुद्रास्फीति इस वर्ष जनवरी में शून्य से 0.90 प्रतिशत नीचे थी। नवंबर 2014 से अब तक यह लगातार 16वां महीना है, जबकि मुद्रास्फीति शून्य से नीचे रही।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक खाद्य मुद्रास्फीति फरवरी में तेजी से घटकर 3.35 प्रतिशत रही, जो जनवरी में 6.02 प्रतिशत थी। मुद्रास्फीति में गिरावट और औद्योगिक परिदृश्य में संकुचन के मद्देनजर उद्योग ने रिजर्व बैंक से 5 अप्रैल को 2016-17 के लिए पहली द्वैमासिक मौद्रिक नीति में ब्याज दर में कटौती की मांग बढ़ाई है।
उद्योग मंडल फिक्की ने कहा, इस मौके पर नीतिगत ब्याज दर में और कटौती तथा बैंकों द्वारा सस्ते कर्ज के रूप में इसका लाभ आगे बढ़ाने से कंपनियों तथा उपभोक्ताओं दोनों को फायदा होगा। इससे कमजोर चल रहे निवेश चक्र और उपभोक्ता चक्र को गति मिलेगी।
उद्योग मंडल ऐसोचैम ने भी नीतिगत ब्याज दर कम किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया है। उसकी दलील है कि सरकार ने 2016-17 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 प्रतिशत के बराबर रखने का फैसला करते हुए राजकोषीय मजबूती की योजना पर कायम रहने की प्रतिबद्धता पूरी की है।
रिजर्व बैंक नीतिगत दर तय करने में अब मुख्य तौर पर खुदरा मुद्रास्फीति को ध्यान में रखता है। रिजर्व बैंक औद्योगिक उत्पादन आंकड़ों को भी ध्यान में रखता है, जो लगातार तीन महीने से गिर रहा है।
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