प्याज, अन्य सब्जियों व पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में गिरावट से नवंबर में थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति शून्य पर आ गई। यह थोक मुद्रास्फीति का साढ़े पांच साल का न्यूनतम स्तर है और इससे रिजर्व बैंक पर वृद्धि को प्रोत्साहन के लिए ब्याज दरों में कटौती का दबाव और बढ़ गया है।
थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रस्फीति इस वर्ष अक्तूबर में 1.77 प्रतिशत और पिछले वर्ष नवंबर में 7.52 प्रतिशत थी।
सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, सब्जियों विशेषरूप से प्याज, खाद्य तेल, पेट्रोल और डीजल कीमतों में गिरावट की वजह से थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में तेज गिरावट आई है।
लगातार छह माह से थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में गिरावट का रुख है। थोक मुद्रास्फीति के शून्य पर आने के साथ ही उद्योग जगत की ब्याज दरों में कटौती की मांग और तेजी हो गई है। जनवरी से केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों में बदलाव नहीं किया है।
इससे पहले इसी महीने मौद्रिक नीति की समीक्षा में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने संकेत दिया था कि यदि मुद्रास्फीति में गिरावट का रुख जारी रहता है, तो अगले साल की शुरुआत में ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, खाद्य मुद्रास्फीति करीब तीन साल के न्यूनतम स्तर 0.63 प्रतिशत पर आ गई। खाद्य मुद्रास्फीति में मई से गिरावट का दौर जारी है।
ईंधन और बिजली वर्ग की कीमतों में नवंबर में सालाना आधार पर 4.91 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई। अक्तूबर में इनकी कीमतें 0.43 प्रतिशत घटी थीं। 2009 के बाद इस वर्ग की कीमतों का यह न्यूनतम स्तर है। ऐसा शायद पहली बार हुआ है जबकि थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति शून्य प्रतिशत पर है। थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति इससे पहले जुलाई 2009 में शून्य से 0.3 प्रतिशत नीचे चली गई थी।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में प्याज की थोक कीमतें सालाना आधार पर 56.28 प्रतिशत घटीं जबकि अक्तूबर में इनमें एक साल पहले की तुलना में 59.77 प्रतिशत की गिरावट आई थी। सब्जियों की कीमत 28.57 प्रतिशत घटी। अंडा, मांस मछली जैसे प्रोटीन युक्त उत्पादों की कीमतें नवंबर में सालाना आधार पर 4.36 प्रतिशत बढ़ी, जबकि आलू में मुद्रास्फीति 34.10 प्रतिशत रही।
चीनी, खाद्य तेल, पेय पदार्थों और सीमेंट जैसे विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति नवंबर में घटकर 2.04 प्रतिशत रह गई जो इससे पिछले महीने 2.43 प्रतिशत थी। नवंबर में खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों में रिकॉर्ड गिरावट आई और यह 4.38 फीसदी पर आ गई।
नवंबर में खुदरा व थोक मुद्रास्फीति में गिरावट तथा अक्तूबर माह में औद्योगिक उत्पादन में 4.2 फीसदी की गिरावट से अब रिजर्व बैंक पर वृद्धि को प्रोत्साहन के लिए ब्याज दरों में कटौती का दबाव बढ़ेगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली भी कई मौकों पर रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में कटौती के लिए कह चुके हैं। पिछले सप्ताह लोकसभा में भी यह मुद्दा उठा था।
गवर्नर रघुराम राजन ने पिछले दिनों कहा था कि सिर्फ ब्याज दरों में कटौती से ही अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज नहीं की जा सकती है।
उद्योग जगत वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज दरों में कटौती की मांग करता रहा है। आर्थिक वृद्धि की दर 2013-14 में घटकर 4.7 प्रतिशत पर आ गई थी। चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था के 5.4 से 5.9 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है।
उद्योग मंडल एसोचैम ने थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के ताजा आंकड़ों के बाद औद्योगिक वस्तुओं की मांग व वृद्धि को प्रोत्साहन के लिए ब्याज दरों में कटौती की जोरदार तरीके से वकालत की है।