देशभर में दालों की कीमतें आसमान पर हैं। अरहर की दाल की कीमतें 180 रुपये किलो से ज्यादा पहुंच चुकी हैं। दूसरी दालों की कीमत भी 100 रुपये के करीब है। अब सवाल यह है कि दालों की कीमतें आसमान पर क्यों हैं? जब एनडीटीवी ने पड़ताल की तो एक किसान ने बताया कि एक किलो अरहर दाल की खेती में उसके 40 रुपये खर्च होते हैं। किसान इसे 80 रुपये प्रति किलो की दर से व्यापारी को बेचते हैं।
तो ऐसे महंगी हो जाती है दाल
जब ये दाल बाजार में पहुंचती है तो इसकी कीमत 180 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि व्यापारी इस पर करीब 110 फीसदी मुनाफा कमाते हैं। इसमें खुदरा दुकानदारों का लाभ भी शामिल है।
खुदरा दुकानदारों का कहना है कि उन्हें यह दाल 170 रुपये प्रति किलो मिलती है और उनका मुनाफ़ा सिर्फ 5-7 फ़ीसदी ही होता है। वहीं सरकार दाल के आयात की बात कर रही है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी महंगी कीमत पर दाल का आयात करने से कोई फायदा नहीं होने वाला।
महंगाई की मुख्य वजह
खराब मॉनसून से दालों की उपज में कमी
व्यापारी करते हैं जमाखोरी
सरकार की पहल में देरी
दालों को आयात करेगी सरकार
दाल की बढ़ती कीमत पर काबू पाने के लिए सरकार दाल का आयात कर बफर स्टॉक बनाएगी। अरुण जेटली ने कहा कि आयात के जरिये उपलब्धता बढ़ाकर कीमतों को नियंत्रित करने की पूरी कोशिश की जा रही है। जेटली के मुताबिक, देश में इस वक़्त 20 लाख टन दाल की कमी है और सरकार ने अब तक 7,000 टन दाल आयात किया है। केंद्र ने राज्यों से दालों का स्टॉक ख़रीदकर बाज़ार में कम क़ीमत पर दाल सप्लाई करने को कहा है। जेटली ने उम्मीद जताई कि सरकार के कदम से दाल की कीमतों में कमी आएगी।