सरकार ने सोमवार को पंचवर्षीय राजकोषीय समेकन योजना का खाका पेश किया जो 2017 तक राजकोषीय घाटे को लगभग आधे पर लाने तथा मौजूदा वित्त वर्ष में 5.3 प्रतिशत पर लाने को लक्षित है।
केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि सरकार ने 31 मार्च, 2013 को समाप्त हो रहे वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.3 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा है।
चिदम्बरम द्वारा पेश की गई योजना के अनुसार, सरकार का राजकोषीय घाटा 2013-14 में 4.8 प्रतिशत हो जाएगा, 2014-15 में 4.2 प्रतिशत, 2015-16 में 3.6 प्रतिशत तथा 2016-17 में तीन प्रतिशत पर आ जाएगा।
चिदम्बरम ने हालांकि यह नहीं बताया कि राजकोषीय घाटे को निरंतर कम करने के लिए उपाय क्या किए जाएंगे।
ज्ञात हो कि वित्त वर्ष 2011-12 के अंत में राजकोषीय घाटा बढ़कर 5.8 प्रतिशत हो गया था।
चिदम्बरम ने कहा, "2011-12 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण देश की विकास दर नीचे आ गई, महंगाई बढ़ गई, कर कम प्राप्त हुए, और सब्सिडी सहित खर्च बढ़ गया, जिसके कारण राजकोषीय दबाव काफी बढ़ गया।"
चिदम्बरम ने कहा, "वर्ष के अंत में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.8 प्रतिशत था। सरकार ने माना कि यदि तत्काल सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो अर्थव्यवस्था निम्न विकास दर, उच्च महंगाई और उच्च घाटे के दुष्चक्र में फंस जाएगी।"
राजकोषीय घाटे में कमी की चिदम्बरम की योजना ऐसे समय में सामने आई है, जब एक दिन पहले सरकार के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल किया गया, और एक दिन बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपनी अर्द्धवार्षिक तिमाही नीतिगत समीक्षा करने वाला है।
चिदम्बरम ने कहा, "यदि राजकोषीय समेकन हुआ और निवेशक विश्वास बढ़ा, तो उम्मीद की जाती है कि अर्थव्यवस्था उच्च निवेश, उच्चतर विकास, निम्न महंगाई और दीर्घकालिक स्थिरता के पथ पर लौट आएगी।"
पिछले वित्त वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर नौ वर्ष के न्यूनतम स्तर, 6.5 प्रतिशत पर पहुंच गई, क्योंकि दो अंकों की महंगाई दर ने सुस्ती से गुजर रही अर्थव्यवस्था की दिक्कतें बढ़ा दीं।
चिदम्बरम के अनुसार, सरकार ने केलकर समिति की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं, जो राजकोषीय घाटे पर लगाम लगाने पर लक्षित है। चिदम्बरम को उम्मीद है कि 2012-13 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.3 प्रतिशत होगा।
समिति ने कराधान, विनिवेश और खर्च में सुधार के कई उपाय सुझाए हैं। कराधान के लिए समिति ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की पुरजोर वकालत की है और प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) को संसद में पेश किए जाने से पहले एक त्वरित समीक्षा करने के लिए कहा है।
राजकोषीय घाटा कम करने की प्रतिक्रया में गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को सब्सिडी वितरण के लिए विशिष्ट पहचान संख्या-आधार- का उपयोग शामिल होगा।
चिदम्बरम ने यह आशा भी जाहिर की है कि आरबीआई, घाटा कम करने और वृद्धि बढ़ाने के लिए प्रमुख दरों में कटौती करने से जुड़े प्रयासों को संज्ञान में लेगा।
आरबीआई से हालांकि दरों में कटौती की अपेक्षा नहीं है, क्योंकि उच्च स्तर की खाद्य महंगाई उसके विकल्पों को सीमित कर देगी।
चिदम्बरम ने कहा कि वह प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) की समीक्षा कर रहे हैं, जिसे संसद में पेश किया जा सकता है।
चिदम्बरम ने यह विश्वास भी जाहिर किया कि सरकार अपने मौजूदा विनिवेश लक्ष्यों को हासिल कर लेगी और लगभग 30,000 करोड़ रुपये जुटा लेगी।