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चीनी मिल संगठन ने कहा, चीनी उत्पादन प्रोत्साहन तीन गुना करने की जरूरत

चालू चीनी विपणन वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद चीनी निर्यात में अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई, मगर उद्योग की ओर से अगले साल की पॉलिसी की मांग शुरू हो गई है. इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने अगले पेराई सत्र में सरकार से गन्ने के दाम पर मौजूदा उत्पादन प्रोत्साहन 5.50 रुपये प्रति क्विंटल को बढ़ाकर तीन गुना करने की मांग की है.
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NDTV Profit हिंदी09:07 AM IST, 27 Jul 2018NDTV Profit हिंदी
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चालू चीनी विपणन वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद चीनी निर्यात में अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई, मगर उद्योग की ओर से अगले साल की पॉलिसी की मांग शुरू हो गई है. इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने अगले पेराई सत्र में सरकार से गन्ने के दाम पर मौजूदा उत्पादन प्रोत्साहन 5.50 रुपये प्रति क्विंटल को बढ़ाकर तीन गुना करने की मांग की है. 

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि अगले सीजन में मौजूदा सीजन के मुकाबले तीन गुना ज्यादा चीनी निर्यात करने की जरूरत होगी इसलिए उत्पादन प्रोत्साहन भी तीन गुना बढ़ना चाहिए. उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "इस साल सरकार ने 20 लाख टन चीनी निर्यात का लक्ष्य निर्धारित किया जिसके लिए गन्ने पर उत्पादन प्रोत्साहन 5.50 रुपये प्रति क्विंटल है. लेकिन अगले सीजन 2018-19 में 60-70 लाख टन चीनी निर्यात करना होगा इसलिए उत्पादन प्रोत्साहन में भी तीन गुनी वृद्धि करनी होगी."

इंडियन शुगर एग्जिम कॉरपोरेशन (आईजेक) के सीईओ अधीर झा ने भी कहा कि अगले सीजन में सरकार को गन्ने के लाभकारी दाम में दिया जा रहा प्रोत्सान बढ़ाकर तीन गुना करना होगा तभी निर्यात संभव होगा. उन्होंने कहा, "यह प्रोत्साहन उन्हीं मिलों को मिलेगा जो न्यूनतम सांकेतिक निर्यात कोटा स्कीम (एमआईईक्यू) के तहत चीनी का निर्यात करेगी, लेकिन अब तक ज्यादा से 40 मिलों ने चालू सीजन में निर्यात किया है. वैश्विक स्तर पर चीनी की आपूर्ति बढ़ने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम में भारी गिरावट आई है, लेकिन घरेलू बाजार में कीमतों में सुधार आया है, इसलिए लोग निर्यात करने से कतरा रहे हैं."

वर्मा ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतों में आई गिरावट से निर्यात में हो रहे घाटे की भरपाई नहीं हो पा रही है, इसलिए निर्यात नहीं हो रहा है. उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "सरकार अगर जल्द अगले सीजन की पॉलिसी की घोषणा करती है तो मिलें सफेद चीनी बनाने के बजाए कच्ची चीनी (रॉ शुगर) बनाना शुरू करेंगी, क्योंकि सफेद चीनी का हमारे पास अभी काफी भंडार है."

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सफेद चीनी की कीमत गुरुवार को 325.25 डॉलर प्रति टन था जबकि रॉ शुगर 11.74 सेंट प्रति पाउंड. देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक उत्तर प्रदेश में चीनी का मिल रेट 3,250-3,350 रुपये प्रति क्विंटल था. अगर 33 रुपये प्रति किलो चीनी को डॉलर प्रति टन में बदलें तो इस समय एक डॉलर का भाव 68.71 रुपये है. इस प्रकार 33,000 रुपये को 68.71 से विभाजित करने पर एक टन चीनी का दाम 480.27 डॉलर आता है. इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय कीमत भारत के मुकाबले 155 डॉलर प्रति टन यानी 10.65 रुपये प्रति किलो कम है.

उद्योग के जानकार बताते हैं कि 5.50 रुपये प्रति क्विंटल के प्रोत्साहन से मिलों के निर्यात घाटे में करीब 7.70 रुपये प्रति क्विंटल की भरपाई हो पाती है. इस प्रकार तीन रुपये प्रति क्विंटल का फिर भी घाटा होता है. इस्मा महानिदेशक का कहना है कि मिलों को इससे ज्यादा घाटा उठाना पड़ता है क्योंकि उनका उत्पादन लागत 35 रुपये प्रति किलो है. वर्मा के अनुसार, मिलों को इस समय निर्यात करने में प्रति टन 6,000-7,000 रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है.

इस्मा से मिली जानकारी के अनुसार, 23 जुलाई तक उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादकों का बकाया 11,410 करोड़ रुपये था. वहीं 30 जून तक महाराष्ट्र में मिलों पर किसानों की बकायेदारी 1,158 करोड़ रुपये थी. देशभर में चीनी मिलों पर 30 जून को गन्ने का बकाया 18,000 करोड़ रुपये था.

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