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शशिकांत ने ली सीएजी पद की शपथ

देश के रक्षा सचिव रहे शशिकांत शर्मा अब नए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) हैं। उन्होंने गुरुवार को अपने पद की शपथ ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।
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NDTV Profit हिंदी09:07 PM IST, 23 May 2013NDTV Profit हिंदी
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देश के रक्षा सचिव रहे शशिकांत शर्मा अब नए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) हैं। उन्होंने गुरुवार को अपने पद की शपथ ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।

61 वर्षीय शर्मा बिहार कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी हैं। वह रक्षा सचिव रह चुके हैं। उन्होंने विनोद राय का स्थान लिया है, जो बुधवार को सेवानिवृत्त हो गए। नए सीएजी का कार्यकाल 24 सितंबर, 2017 तक का होगा।

शपथ-ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता लालकृष्ण आडवाणी, केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री मनीष तिवारी, केंद्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला तथा अन्य शामिल थे।

ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ यॉर्क से राजनीति विज्ञान में एमए शर्मा ने वित्त विभाग में सचिव के रूप में काम किया और रक्षा मंत्रालय में विभिन्न पदों पर 10 वर्षो तक सेवा दी।

सीएजी की नियुक्ति छह साल के लिए या शपथ लेने वाले व्यक्ति के 65 साल के होने तक होती है।

सीएजी के रूप में शर्मा की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में 1.76 लाख करोड़ रुपये के राजस्व के नुकसान के आकलन को लेकर यह संस्था सरकार की आलोचनाओं का सामना कर रही है।

उधर, आम आदमी पार्टी (एएपी) के नेता एवं सर्वोच्च न्यायालय के वकील प्रशांत भूषण ने सीएजी के रूप में शर्मा की नियुक्ति को अवैध एवं असंवैधानिक करार दिया है। उन्होंने कहा कि शर्मा पिछले 10 वर्षो से रक्षा मंत्रालय में विभिन्न पदों पर थे। इस दौरान उन्होंने कई खरीद समझौतों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी। सीएजी के रूप में उनकी नियुक्ति का सीधा अर्थ है कि हितों का टकराव होगा।

सीएजी के रूप में शर्मा की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका भी सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई है।

भाजपा ने भी सीएजी के रूप में शर्मा की नियुक्ति पर आपत्ति जताई है। पार्टी का कहना है कि शर्मा जब भी रक्षा समझौतों का अंकेक्षण करेंगे तो हितों का टकराव होगा, क्योंकि रक्षा सचिव के रूप में उनकी महती भूमिका रही है।

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