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रुपए को संभालना रघुराम राजन के लिए होने वाली है बड़ी चुनौती

भारत ने 2013 में मुद्रा संकट से निकलने के लिए तरलता उपाय के तौर पर डॉलर को आकर्षित करने के लिए जो योजना पेश की थी उसकी समयावधि समाप्त होना परेशानी का सबब बन सकता है।
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NDTV Profit हिंदी02:40 PM IST, 16 Jun 2016NDTV Profit हिंदी
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भारत ने 2013 में मुद्रा संकट से निकलने के लिए तरलता उपाय के तौर पर डॉलर को आकर्षित करने के लिए जो योजना पेश की थी उसकी समयावधि समाप्त होना परेशानी का सबब बन सकता है। उस समय करीब 20 बिलियन (करोड़) डॉलर का निवेश होने से हमें बड़ी राहत तो मिल गई थी लेकिन अब जबकि रुपए की हालत अच्छी नहीं है, इतना पैसा देश से निकलना देश निवेश के लिए अच्छी खबर नहीं मानी जा रही है।

रुपया पहले से ही कमजोर है बाजार में
विश्लेषकों का मानना है कि इस साल रुपया पहले से ही एशिया के मुद्रा बाजार में डॉलर के मुकाबले खराब प्रदर्शन कर रहा है और उसके सितंबर तक कमजोर रहने की ही उम्मीद है, जब डॉलर की सावधि जमा कि परिपक्वता अवधि पास आ रही है। बाजार और नीति विशेषज्ञ दोनों का मानना है कि आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के लिए डॉलर का यूं बाहर बह जाना एक मुद्रा चुनौती की तरह होगा। राजन का  खुद का कार्यकाल सितंबर में खत्म हो रहा है और उनका कार्यकाल बढ़ाने पर फैसला होना बाकी है।

निवेशक गहरी नजर रखेंगे कि रिजर्व बैंक हालातों के लिए क्या कदम उठाता है
पीआईएमसीओ में पोर्टफोलियो मैनेजमेंट इम्मरजिंग एशिया के प्रमुख ल्यूक स्पाजिक ने कहा कि डॉलर का बह जाना एक अपेक्षित घटना है इसके बावजूद निवेशक इस पर गहरी नजर रखेंगे कि रिजर्व बैंक तरलता के इन हालातों के लिए क्या कदम उठाता है। सितंबर 2013 में अमेरिकी फेडरल रिजर्व रेट बढ़ने की वजह से भारत जैसे संवेदनशील बाजारों पर बुरा असर होने की आशंकाओं के बीच जब रघुराम राजन ने आरबीआई के प्रमुख के तौर पर पद संभाला था, उन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए थे। इनके तहत बैंको से कहा गया कि वे विदेश में रहने वाले भारतीयों को विदेशी मुद्रा अप्रवासी बैंक निवेश जैसी योजनाओं के माध्यम से डॉलर में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे तरलता बढ़ेगी और विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा। आरबीआई ने इन डॉलरों को बैंको से मुनाफेदार दर पर रुपए का विनिमयन किया था।

करीब 20 करोड़ डॉलर की रकम देश से बाहर जा सकते है सितंबर के बाद
अब, जबकि करीब 28 बिलियन ( करोड़) डॉलर आगामी सितंबर से नवंबर तक मैच्योर (परिपक्व) हो रहे हैं आरबीआई को बैंकों को डॉलर मुहैया करवाना होगा जिससे कि वे ग्राहकों को भुगतान कर सकें। डॉ राजन ने पिछले हफ्ते ही कहा है कि उन्हें सितंबर से नवंबर के बीच 20 बिलियन (करोड़) डॉलर के बाहर बह जाने की उम्मीद है। ये पिछले तीन महीने में बाहर जा चुके पैसे का तीन गुना है।

बाहरी प्रवाह का सावधानी से प्रबंधन करना होगा
डॉ राजन को मुद्रा के इस बाहरी प्रवाह का सावधानी से प्रबंधन करना होगा खासतौर पर ऐसे समय में जब दुनिया के बाजार में अमेरिका के दर बढ़ाने की उम्मद है,  चीन को लेकर कुछ चिंताएं हैं और कच्चे तेल की कीमतें सुस्ती दिखा रहीं हैं।इन्ही में ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन में शामिल होने के जनमत संग्रह को लेकर चिंताएं भी शामिल हैं। जोखिम को कम करने की बात करते हुए उनका कहना है कि वह सितंबर में रुपए की  अस्थिरता से निपटने के लिए तैयार हैं। पिछले साल अक्टूबर में आरबीआई नें बैंकों के साथ मिलकर तत्कालीन मुद्रा स्थिति की समीक्षा की थी। ये जानकारी बैठक में शामिल एक बैंकर ने दी।

अगले बारह महीनों के आयात के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है
आरबीआई धीरे धीरे अपना विदेशी मुद्रा भंडार, विशेषकर डॉलर भंडार बढ़ा रहा है। जून में विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चतम रिकार्ड 363.5 बिलियन (करोड़) डॉलर पर पहुंच गया था जो कि अगले 12 महीनों के आयात के लिए पर्याप्त है, जबकि सितंबर 2013 में ये 274.8 बिलियन (करोड़) डॉलर था जो कि केवल छह या सात महीने के आयात के लिए सक्षम था। इसे मजबूत आर्थिक आधार के तौर पर देखा जा सकता है लेकिन नीतिनिर्धारकों को अब भी आशंका है कि बाजार में कुछ पलायन दिखाई दे सकता है।

कोटक सिक्योरिटीज के करेंसी डेरिवेटिव के असोसिएट वाइस प्रेसिडेंट अनिन्द्या बैनर्जी ने कहा इसका असर थोड़े समय तक ही रहेगा। यदि कोई और खास बात नहीं हुई तो शायद असर बढ़ सकता है। यदि युआन तेजी से गिरता है या तेल की कीमतें तेजी से गिरतीं हैं  तो ये उबरते हुए बाजार के लिए आघात हो सकता है।

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