ऊंचे राजकोषीय घाटे को लेकर चिंतित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2.5 लाख करोड़ रुपये की अधिशेष नकदी पर बैठे केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को विकास योजनाओं में यह राशि खर्च करने को मंगलवार को कहा ताकि आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने में मदद मिल सके।
प्रधानमंत्री के साथ सार्वजनिक उपक्रमों के प्रमुखों की हुई एक बैठक के शीर्ष पीएसयू को कड़ा संदेश दिया गया कि या तो वे अपने भारी आधिक्य को निवेश करें या इसे बतौर विशेष लाभांश सरकार को लौटाएं।
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘‘केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के भारी आधिक्य की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए प्रधानमंत्री ने उन्हें अपने आधिक्य का इस्तेमाल खुद के लाभ एवं अर्थव्यवस्था के लाभ के लिए करने को कहा।’’ सिंह ने कहा कि देश को 8-8.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का स्तर हासिल करना चाहिए, भले ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में कुछ भी हो रहा हो। हमें तैरना और तेजी से तैरना सीखना होगा परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों।’’
बैठक के बाद भारी उद्योग व सार्वजनिक उपक्रम मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने कहा, ‘‘अगर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां निवेश योग्य अधिक नकदी अपने विकास में खर्च नहीं करती हैं तो यह पैसा बेकार नहीं पड़ा रहना चाहिए और इसे विशेष लाभांश के तौर पर उन्हें सरकार को वापस लौटाना होगा।’’ बैठक में ओएनजीसी, कोल इंडिया, भेल, एनटीपीसी, सेल, एनएमडीसी सहित 25 सार्वजनिक कंपनियों के प्रमुख शामिल थे।
पटेल ने कहा, ‘‘केंद्रीय सार्वजनिक कंपनियों के पास बड़ी मात्रा में अधिक नकदी है। वास्तव में, उनके पास ढाई लाख करोड़ रुपये से अधिक की निवेश योग्य नकदी है। सरकार चाहेगी कि कंपनियां विकास करें और अपनी विकास योजना में इसे निवेश करें।’’
उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के मुद्दों को देखने के लिए सचिवों की एक समिति का गठन किया जाएगा जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव अजित कुमार सेठ करेंगे। यह समिति स्वायत्तता और नियामकीय मंजूरियों जैसे मुद्दों के अलावा अतिरिक्त कोष के निवेश को भी देखेगी।
पटेल ने कहा, ‘‘बैठक में वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी मौजूद थे और मैंने स्पष्ट तौर पर कहा कि या तो आप (पीएसयू) धन का इस्तेमाल समयबद्ध तरीके से अपने विकास के लिए करें या इसे विशेष लाभांश के तौर पर सरकार को लौटा दें।’’ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शीर्ष निकाय स्कोप के महानिदेशक यूडी चौबे ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बैठक में जिन मुद्दों पर चर्चा हुई उनमें एमओयू प्रणाली में सुधार की गुंजाइश, परियोजनाओं को मंजूरी देने में तेजी, निवेश योजनाएं, दीर्घकालीन लक्ष्य व रणनीति आदि शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि कंपनियों के प्रमुखों ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें कंपनियों में निर्णय करने के रास्ते आने वाली बाधाओं का जिक्र किया गया है जिससे कंपनियों का निष्पादन प्रभावित होता है। बैठक में उत्तराधिकारी की योजना और सीएमडी-निदेशकों के चयन में तेजी लाने के मुद्दे पर भी चर्चा की गई।
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने अपने निदेशक मंडलों को व्यावसायिक निर्णयों के संबंध में पूरी स्वायत्तता दिए जाने की अपील की। बैठक में इन कंपनियों की ओर से जोर दिया गया कि निदेशक मंडलों को दैनिक कामकाज के प्रबंधन, निवेश नियोजन, विलय एवं अधिग्रहण, बोर्ड के नीचे के स्तर के पदों का सृजन तथा अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशकों को अपनी व्यावसायिक यात्राओं के लिए योजना बनाने करने का अधिकार मिले।