खान और खनिज पदार्थों को राष्ट्रीय संपदा बताते हुए उच्चतम न्यायालय ने झारखंड में छह निजी कंपनियों की खानों के पट्टे निरस्त करने की राज्य सरकार की सिफारिश को सही ठहराया है।
न्यायमूर्ति आरएम लोढा और न्यायमूर्ति एचएल गोखले की खंडपीठ ने इन कंपनियों की इस दलील को ठुकरा दिया कि एक बार राज्य द्वारा खान को पट्टे पर देने की सिफारिश केन्द्र से करने के बाद उसे वापस लेना गैरकानूनी है। न्यायाधीशों ने कहा कि खान और खनिज पदार्थ राष्ट्रीय संपदा का हिस्सा हैं और ये समूचे समुदाय के संसाधन का हिस्सा हैं।
न्यायालय ने कहा कि उन्हें खान के पट्टे देने की सिफारिश वापस लेने संबंधी राज्य सरकार के 13 सितंबर, 2005 के पत्र और पट्टा देने की अनुमति अस्वीकार करने संबंधी केन्द्र सरकार के छह मार्च 2003 के पत्र में लिखे कारणों के बाद इसमें कोई त्रुटि नजर नहीं आती है।
न्यायालय ने कहा कि उसकी राय में निजी क्षेत्र के लोगों को खान के पट्टे देने से इंकार करने और 1962, 1969 और 2006 की अधिसूचनाओं के अनुरूप इन खानों को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित रखने का झारखण्ड सरकार का निर्णय पूरी तरह न्यायोचित हैं।
शीर्ष अदालत ने झारखण्ड में खानों के पट्टे निरस्त करने के राज्य सरकार के निर्णय को चुनौती देने वाली मोनेट इस्पात एंड एनर्जी लि तथा कई अन्य कंपनियों की याचिका खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी।
न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार की कार्यवाही न तो अनुचित है और न ही इसे मनमाना कहा जा सकता है। इस कार्यवाही से न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत का भी हनन नहीं होता। झारखण्ड सरकार ने 13 सिंतबर 2005 को पश्चिम सिंहभूमि जिले के मौजा घाटकुरी इलाके सहित कुछ इलाकों में लौह अयस्क की खदानों के पट्टे देने की सिफारिश वापस लेने का पत्र केन्द्र सरकार के खान मंत्रालय को लिखा था। इससे पहले केन्द्र सरकार के खान मंत्रालय ने राज्य सरकार की सिफारिश लौटा दी थी।
केन्द्र सरकार ने यह सिफारिश इसलिए लौटा दी थी क्योंकि यह इलाके सुरक्षित थे और निजी क्षेत्र के दोहन के लिए उपलब्ध नहीं थे। खान और खनिज पदार्थ (विकास और नियमन) कानून के तहत आरक्षित क्षेत्रों में सार्वजनिक उपक्रमों या राज्य की संयुक्त परियोजना के अलावा किसी अन्य को खनन कार्य के लिए पट्टा नहीं दिया जा सकता है।