सुस्त मांग से मायूस घरेलू इस्पात कंपनियों को ढांचागत क्षेत्र में सरकार द्वारा तेजी लाए जाने की उम्मीद है और कंपनियों का मानना है कि आगे चलकर रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति नरम किए जाने से इस्पात बाजार में मांग बढ़ेगी।
जनवरी-मार्च तिमाही में बिक्री अच्छी रहने के बावजूद महंगा कच्चा माल और रुपया में गिरावट से ज्यादातर इस्पात कंपनियों का मुनाफा प्रभावित हुआ। कमजोर रुपये ने अप्रैल-जून तिमाही में भी कमोबेश यही स्थिति कायम रखी।
वहीं, जुलाई से इस्पात की मांग में गिरावट ने जले पर नमक छिड़कने वाला काम किया और मानसून आने व आर्थिक नरमी ने पिछले तीन-चार महीने स्थिति बद से बदतर कर दी जिससे साल 2012 इस्पात कंपनियों के लिए काफी कठिन रहा।
उद्योग विश्लेषकों का कहना है कि इस्पात मंत्रालय ने उद्योग की कोई खास मदद नहीं की। हालांकि, मंत्रालय ने लौह अयस्क का निर्यात महंगा कर दिया ताकि बगैर मूल्यवर्धन के प्रमुख कच्चा माल देश से बाहर ना जाए और घरेलू इस्पात कंपनियों को यह सस्ती दर पर उपलब्ध हो।
सुस्त बिक्री की समस्या से निपटने के लिए ग्रामीण बाजार में बिक्री बढ़ाने के प्रयास किए जाने की जरूरत है जहां प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत महज एक किलो भी बढ़ने पर सालाना मांग में कम से कम 10 लाख टन की बढ़ोतरी हो सकती है।
उत्पादन के मोर्चे पर चालू कैलेंडर वर्ष के प्रथम 11 महीनों में जहां वैश्विक इस्पात उत्पादन महज 0.9 प्रतिशत और चीन में उत्पादन 2.9 प्रतिशत बढ़ा, वहीं भारतीय उद्योग ने 4.2 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की।
हालांकि, प्रथम 11 महीनों में इस्पात की मांग 5.25 प्रतिशत बढ़कर 6.67 करोड़ टन रहा जोकि फिच रेटिंग के 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर के अनुमान से काफी कम है। फिच ने वर्ष 2012 के लिए मांग 6.7 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान जताया था।