ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध समाप्त होने के साथ भारत वहां से कच्चे तेल का आयात बढ़ाने और तेल फील्ड अनुबंध प्राप्त करने पर गौर कर रहा है। हालांकि पिछले तेल आयात के 5.8 अरब डॉलर के बकाये का तत्काल भुगतान उसके समक्ष बड़ा मुद्दा है। अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों के दबाव के कारण भारत ने ईरान से तेल आयात में उल्लेखनीय कटौती की थी।
ईरान एक समय भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश रहा है, जहां से 2009-10 में 2.12 करोड़ टन तेल की खरीदारी हुई थी। वह 2013-14 में घटकर 1.1 करोड़ टन रही गई। अब जबकि प्रतिबंध उठ गया है, भारतीय रिफाइनरियां आयात बढ़ाना चाह रही हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ईरान तेल बिक्री के लिए अच्छी शर्तों की पेशकश करता है। वे हमें 90 दिन का क्रेडिट देते हैं यानी हमें खरीद के 90 दिन बाद भुगतान करना होता हैं, जबकि अन्य विक्रेता के मामले में यह 30 दिन है। निश्चित रूप से हम ईरान से आयात बढ़ाने पर गौर करेंगे। मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (एमआरपीएल) तथा एस्सार ऑयल लिमिटेड ईरानी कच्चे तेल के मुख्य खरीदार हैं। दोनों हर साल करीब एक करोड़ टन तेल का आयात करते हैं। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन कम मात्रा में तेल खरीदता है।
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि प्रतिबंध हटने का यह भी मतलब है कि तेल रिफाइनरी कंपनियों को ईरान से तेल खरीदने के एवज में पिछला 5.8 अरब डॉलर का बकाया चुकाना होगा।
फरवरी 2013 से एस्सार ऑयल और एमआरपीएल जैसी भारतीय रिफाइनरी कंपनियां आयात बिल का 45 प्रतिशत भुगतान कर रही हैं। वे ईरान की तेल कंपनियों को यह भुगतान यूको बैंक खाते के जरिये रुपये में कर रही हैं। भुगतान चैनल के बारे में निर्णय लंबित होने के कारण शेष राशि का भुगतान किया जाना है। अधिकारी ने कहा कि अब भुगतान चैनल खुलने के साथ ईरान 5.8 अरब डॉलर अमेरिकी डॉलर या यूरो में भुगतान की मांग करेगा।