वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में उठापटक और अस्थिरता के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को 'काफी संतोषजनक' बताया है। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में गतिविधियां नहीं बढ़ने की जो आवाजें उठ रही हैं वह यहां की 'जीवनशैली का हिस्सा बन चुके - निराशावाद' की वजह से है।
वित्त मंत्री ने वर्ष 2015 पर गौर करते हुए कहा कि वैश्विक मंदी और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 7 से 7.5 प्रतिशत वृद्धि की संभावनाओं के साथ भारत दुनियाभर में चमकता हुआ आकर्षक स्थान बना रहा। उन्होंने उम्मीद जताई कि आर्थिक वृद्धि अच्छी है और आने वाले महीनों में इसमें और सुधार होगा।
जेटली ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में छाई मंदी से उत्पन्न चुनौती में भारत की प्रतिक्रिया अच्छी रही है। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ क्षेत्र हैं जहां तेजी से काम करना होगा। वित्त मंत्री ने पीटीआई को दिए साक्षात्कार में कहा, वर्ष की समाप्ति पर जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे काफी संतोष होता है। देश की वित्तीय बुनियाद काफी मजबूत है।
वित्त मंत्री ने नए साल की अपनी प्राथमिकताओं को गिनाते हुए कहा कि वह ढांचागत सुधारों को जारी रखेंगे और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), प्रत्यक्ष करों को तर्कसंगत बनाना तथा कारोबार सुगमता उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रहेगा। उन्होंने कहा, यह काम करने के बाद, मैं मुख्यतौर पर तीन बातों पर ध्यान दूंगा- भौतिक बुनियादी ढांचा, सामाजिक अवसंरचना के लिए अधिक धन और अंत में सिंचाई के लिए अधिक धन, इस क्षेत्र को काफी नजरंदाज किया गया।
वित्त मंत्री से जब यह पूछा गया कि अर्थव्यवस्था में वास्तविक सुधार नहीं आ रहा है इस तरह की आवाजें उठ रहीं हैं, जेटली ने ऐसी बातों को तवज्जो नहीं देते हुए इन्हें खारिज कर दिया और कहा, अर्थव्यवस्था में गतिविधियां बढ़े बिना राजस्व प्राप्ति नहीं बढ़ती है। उन्होंने कहा, भारत में निराशावाद जीवनशैली का हिस्सा है। आप किसी अन्य आंकड़े को लेकर सवाल खड़ा कर सकते हैं, लेकिन राजस्व में हुई वास्तविक वृद्धि को लेकर सवाल नहीं उठा सकते हैं। राजस्व में हुई वास्तविक वृद्धि यह दर्शाती है कि अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बेहतर है।
चीन में सुस्ती के अलावा विश्व बाजार में उपभोक्ता जिंसों के दाम घटने से उत्पन्न चुनौती के साथ साथ भारत को लगातार दो बार कमजोर मॉनसून और निजी क्षेत्र के कमजोर निवेश जैसी घरेलू चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। इन सब बातों की वजह से हमारे लिए घरेलू अर्थव्यवस्था का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बन गया।
उन्होंने कहा, निजी क्षेत्र का निवेश लगातार कम बना हुआ है, क्योंकि निजी क्षेत्र ने जरूरत से ज्यादा विस्तार किया है... उनके पास जरूरत से ज्यादा उत्पादन क्षमता है, जबकि मांग धीमी है। जेटली ने कहा कि सरकार ने सार्वजनिक निवेश बढ़ाकर इन चुनौतियों का बेहतर जवाब देने का प्रयास किया। इसके साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 40 प्रतिशत वृद्धि हासिल की गई और खपत में नई स्फूर्ति आई है।
उन्होंने कहा कि सरकार को विश्व बाजार में कच्चे तेल की कम कीमतों से जो बचत हुई उसका इस्तेमाल ढांचागत सुविधाओं में किया गया। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजमार्गों, ग्रामीण सड़कों और रेलवे क्षेत्र में निवेश में उल्लेखनीय सुधार आया है। बंदरगाह क्षेत्र में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा दिया गया है।
जेटली ने कहा, इसके परिणामस्वरूप, वैश्विक सुस्ती और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 7 से 7.5 प्रतिशत वृद्धि संभावनाओं के साथ भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक चमकता आकर्षक स्थान है। यह वृद्धि संभावना हमारे 8 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है। मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि यदि मॉनसून सामान्य रहता, तो हम अपने वृद्धि लक्ष्य के आसपास होते।