भारत ने चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को लेकर चिंता जताई है और इस पर काबू पाने के लिए पड़ोसी देश से अपने यहां निवेश को कहा है। पिछले तीन बरस में व्यापार घाटा औसतन 35 अरब डॉलर रहा है। इसके अलावा भारत ने अपने ‘जीर्ण पड़ते’ रेल नेटवर्क के उन्नयन के लिए चीन से वित्तीय व तकनीकी सहयोग मांगा है।
भारत और चीन के बीच रणनीतिक आर्थिक वार्ताओं के तीसरे दौर की यहां बैठक में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा, इस अवसर पर मैं द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ते असंतुलन का अवश्य उल्लेख करना चाहूंगा क्योंकि भारत में यह एक चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि व्यापार आर्थिक सहयोग का महत्वपूर्ण संकेतक है। और इसमें और रहे तेज विस्तार से हम खुश हैं। अहलूवालिया ने उम्मीद जताई कि 2015 तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर के आधिकारिक लक्ष्य को छू लेगा।
अहलूवालिया ने कहा, हम इस बात को मानते हैं कि दो देशों के बीच पारस्परिक व्यापार में निर्यात आयात हर बार बराबर नहीं रह सकता फिर भी भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा पिछले तीन साल से लगातार 35 अरब डॉलर सालाना से ऊपर बना हुआ है, यह वहनीय नहीं है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि भारत से चीन को कुछ और वस्तुओं का निर्यात बढ़ाकर व्यापार घाटे में कमी लाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही चीन को ऐसी कुछ वस्तुओं की निर्माण क्षमता भारत में स्थापित करनी चाहिए, जिनका वह अभी भारत को निर्यात कर रहा है।
भारत चीन द्विपक्षीय व्यापार पिछले साल 66.5 अरब डॉलर का रहा। व्यापार में गिरावट के रुख की वजह विभिन्न कारणों मसलन रुपये की गिरावट व लौह अयस्क निर्यात में कमी की वजह से भारत से निर्यात घटना है। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि व्यापार घाटा इस स्तर पर पहुंच गया है जबकि भारत को चीन के साथ अंसतुलन को दूर करने के लिए दूसरे देशों से ऋण लेना पड़ रहा है। चीन भी इस बात को जानता है। भारत में चीन का निवेश इस समय एक अरब डॉलर से भी कम है।
अहलूवालिया ने कहा, मुझे उम्मीद है कि चीन की सरकार हमारे निर्यात को अपने बाजारों में और ज्यादा जगह देगी ताकि 100 अरब डॉलर के व्यापार लक्ष्य को अधिक संतुलित ढंग से हासिल किया जा सके। दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 65.47 अरब डॉलर पर पहुंच गया जो कि एक साल पहले की तुलना में 1.5 प्रतिशत की मामूली गिरावट दर्शाता है। वर्ष 2012 में द्विपक्षीय व्यापार 66.7 अरब डॉलर रहा. जो कि एक साल पहले 2011 में 74 अरब डॉलर तक पहुंच गया था।
रेलवे के क्षेत्र में सहयोग की बातचीत में दोनों पक्ष अधिक भारी मात्रा में माल ढुलाई, ढुलाई की क्षमता, स्टेशनों के सुधार और भारत में मौजूदा ट्रेनों की गति बढ़ाने के मामले में कुछ चुनिंदा सहयोग की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमत हुए हैं।
बातचीत के बाद जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस बारे में तौर तरीकों को अंतिम रूप देने के लिए दोनों देशों की ओर से प्रमुख एजेंसियों का नाम दे दिया गया है।
इंजीनियरिंग उत्पादों, सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी विभिन्न सेवाओं, सूती कपड़ों और घरेलू साज सज्जा, औषधि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के लिहाज से भारत की मजबूत स्थिति का उल्लेख करते हुए अहलूवालिया ने कहा, इन क्षेत्रों में व्यापार बढ़ाने में दोनों देशों की सरकारों की भूमिका महत्वपूर्ण है। अहलूवालिया ने कहा कि दोनों तरफ के प्रतिनिधिमंडलों ने मिल कर पांच कार्य समूह बनाए थे। इन समूहों ने द्विपक्षीय व्यापार, निवेश और आर्थिक सहयोग, क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक स्थिति के बारे में गहन विचार-विमर्श किया।
विज्ञप्ति के अनुसार बातचीत में, रेलवे ढांचागत सुविधाओं, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और वित्त जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग पर विशेष बल दिया गया। दोनों पक्ष बहुपक्षीय संस्थाओं जैसे संयुक्त राष्ट्र, समूह-20 और ब्रिक्स देशों के स्तर पर आपसी सहयोग और समन्वय बढ़ाने पर भी सहमत हुए हैं। विज्ञप्ति के अनुसार, दोनों पक्षों ने पर्यावरण की दृष्टि से संतुलित शहरीकरण और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी में सहयोग के लिए आपसी सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किए हैं। दीर्घकालिक शहरीकरण और ऊर्जा योजना के क्षेत्र में संयुक्त अध्ययन के लिए कार्य योजना पर भी हस्ताक्षर किए गए। इसे बातचीत के अगले दौर से पहले पूरा करने को कहा गया।