बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि सरकार बड़ी पनबिजली परियोजनाओं को अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में वर्गीकृत करने पर विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि इससे देश को 2022 तक 2,25,000 मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त करने में मदद मिल सकती है. लघु परियोजना (25 मेगावाट तक) तथा बड़ी पनबिजली परियोजना के बीच अंतर हटाये जाने से देश में अक्षय उर्जा क्षेत्र में स्थापित क्षमता 2022 तक 2,25,000 मेगावाट हो जाएगी.
कुल 3,05,000 मेगावाट की स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में 43,000 मेगावाट बड़ी पनबिजली परियोजनाओं (25 मेगावाट से ऊपर) से आती हैं. अक्षय ऊर्जा के अन्य स्रोतों पर आधारित स्थापित क्षमता 44,230 मेगावाट है.
भारत ने 2022 तक 1,75,000 मेगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता का लक्ष्य रखा है जिसमें सौर बिजली की स्थापित क्षमता 1,00,000 मेगावाट है. इसके अलावा पवन ऊर्जा से 60,000 मेगावाट, बायो तथा छोटी पनबिजली परियोजनाओं से क्रमश: 10,000 और 5,000 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता सृजित करने का लक्ष्य है.
यहां एक सम्मेलन में गोयल ने कहा, ‘‘आखिर दो अंतर क्यों होने चाहिए. तीन-चार देश हैं जहां इस प्रकार का अंतर है.’’ गोयल का विचार है कि अगर बड़ी पनबिजली परियोजनाओं को अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में शामिल कर लिया जाए तो 2022 तक 1,75,000 मेगावाट का लक्ष्य प्राप्त करने के बाद स्वच्छ और हरित ऊर्जा की स्थापित क्षमता 2,25,000 मेगावाट हो जाएगी.
इस मुद्दे पर सरकार की तरफ से उठाये गये कदम के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘मेरे मंत्रालय ने इस पर रिपोर्ट तैयार की है. अब हम इसे सार्वजनिक विचार-विमर्श के लिये जारी करेंगे. उसके बाद अंतिम निर्णय किया जाएगा कि क्या सभी पनबिजली परियोजनाओं को अक्षय ऊर्जा के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है.’’
पीयूष गोयल ने कहा कि एलईडी बल्बों की खरीद कीमत घटकर 38 रुपये प्रति नौ वाट बल्ब हो गई है जो 17 महीने पहले करीब 310 रुपये थी.
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से स्वच्छ प्रौद्योगिकी तक पहुंच की अनुमति देने के मामले में सहयोग का आह्वान किया ताकि विकासशील देश अपनी जरूरत के हिसाब से इसे विकसित कर सके.
उनका विचार था कि जलवायु परिवर्तन एक सामूहिक जिम्मेदारी है और कार्बन उत्सर्जन के लिये विकसित देश विकासशील देशों के मुकाबले अधिक जिम्मेदार हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारत स्वच्छ प्रौद्योगिकी के लिये अपने अनुसंधान एवं विकास पर खर्च चौगुना करेगा.
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