मुद्रास्फीति की ऊंची दर के साथ-साथ अब मानसून की कमी को देखते हुए रिजर्व बैंक के लिए ब्याज दरों में कटौती का कदम उठाना मुश्किल हो सकता है। अर्थव्यवस्था में गतिविधियां बढ़ाने के लिए नीतिगत दरों में कटौती को जरूरी माना जा रहा है।
उद्योग जगत रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद लगाए बैठा है। हालांकि, बैंकरों को उम्मीद है कि आरबीआई मंगलवार को होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में आरक्षित नकद अनुपात (सीआरआर) में आधा फीसदी कमी कर सकता है लेकिन ऊंची मुद्रास्फीति को देखते हुए केंद्रीय बैंक के लिए उद्योग की मांग पर ध्यान देना संभव नहीं लगता। मुद्रास्फीति सात फीसदी से ऊपर है जो कि इसके संतोषजनक स्तर से काफी ऊपर है।
इसके अलावा बारिश की अनिश्चितता से आवश्यक जिंसों की कीमत पर दबाव पड़ सकता है। देश में औसतन बारिश अब तक 21 फीसदी कम हुई है।
आरबीआई गवर्नर डी. सुब्बाराव मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा पेश करेंगे और यदि उनके मुद्रास्फीति, राजकोषीय व चालू खाता के घाटे के बारे में दिए गए हाल के बयानों को संकेत माना जाए तो इस बार कुछ ज्यादा फेर-बदल की गुंजाइश नहीं है।
सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर नौ साल के न्यूनतम स्तर 6.5 फीसदी रही है जबकि थोकमूल्य आधारित मुद्रास्फीति जून में 7.25 फीसदी रही। खुदरा मुद्रास्फीति 10.02 फीसदी के आस-पास है। आरबीआई ने 16 जून को हुई बैठक में मुख्य दरें और सीआरआर अपरिवर्तित रखी।
इस बीच सुब्बाराव ने हाल ही में कहा था कि केंद्रीय बैंक उच्च ब्याज दरों और वृद्धि में नरमी के बीच संबंध का अध्ययन करेगा।
इधर, बैंकों ने कहा कि उन्हें सीआरआर में आधा फीसदी कमी की उम्मीद है जो फिलहाल 4.75 फीसद है। हालांकि, रेपो दर में कमी की उम्मीद नहीं है जो आठ फीसद है।
भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष प्रतीप चौधरी ने कहा, हमें सीआरआर में आधा फीसद कमी की उम्मीद है ताकि धनापूर्ति बढ़ाई जा सके। सीआरआर में कटौती का असर ग्राहकों को भी ब्याज दर में राहत मिलेगी और रेपो दर में कटौती के मुकाबले इसका मौद्रिक लेन-देन पर ज्यादा असर होगा।
यस बैंक के प्रबंध निदेशक राना कपूर ने कहा, मुझे रेपो दरों में कटौती की गुंजाइश कम नजर आती है क्योंकि मुद्रास्फीति आरबीआई की नजर में शीर्ष पर है। सेंट्रल बैंक और यूनियन बैंक के अध्यक्ष एमवी टंकसाले और डी सरकार ने हालांकि, कहा कि आरबीआई सीआरआर में कटौती कर सकती है ताकि प्रणाली में ज्यादा धन लाया जा सके और नकदी की स्थिति बेहतर की जा सके।
आरबीआई ने मौद्रिक नीति की पिछली समीक्षा में कहा था कि मौद्रिक नीति में और किसी तरह की गतिविधि सरकार की राजकोषीय पुनर्गठन की पहल पर निर्भर करेगी।
हालांकि, चालू वित्त वर्ष के चार महीने पूरे हो चुके हैं लेकिन सरकार ने अब तक सब्सिडी बिल पर लगाम लगाने की योजना के खाके की घोषणा नहीं की है।