40 साल के मुकेश राठौड़ आजकल आराम करके ही ज्यादातर समय काटते हैं. वह इंतज़ार में हैं कि कब उनकी हीरा तराशने की यूनिट फिर से शुरु होगी और उन्हें कुछ काम मिलेगा ताकि वे 5 लोगों के अपने परिवार को कुछ सहारा दे सकें. वैसे तो सूरत में हीरा उद्योग 15 नवम्बर से ही शुरू हो जाता है लेकिन इस बार हालात अलग हैं. मुकेश को 15 दिन की तनख्वाह 1 दिसम्बर को 7500 रुपये मिल जाती थी लेकिन इस बार नोटबंदी के चलते हीरा उद्योग अब तक दोबारा शुरु नहीं हो पाया है.
सूरत में करीब 10,000 हीरा कारखानों में 5 लाख लोग हीरा तराशने का काम करते हैं. इनमें से मुश्किल से 30 प्रतिशत लोगों के पास बैंक अकाउंट हैं लिहाज़ा ज्यादातर कारोबार कैश में ही होता था. नोटबंदी इन लोगों के लिए कारखानाबंदी बन गई है. हीरा कारोबारी भी कहते हैं कि अब तक सारा कारोबार कैश से ही चलता था. अब सब कुछ लीगली टैक्स के दायरे में आकर करना पड़ेगा. इसे सिस्टम में लागू करने में 4 से 6 महीने निकल जाएंगे.
हालांकि कई लोग मानते हैं कि अंत में सब अच्छा ही होगा. पहले कारीगर पैसा लेकर भाग भी जाते थे, वो भी बंद होगा. आम दिनों में जहां चलने के लिए जगह नहीं रहती है ऐसे हीरा उद्योग केबाज़ार में आज दुकानें पूरी तरह बंद हैं. कई व्यापारियों ने अपने कर्मचारियों के लिए बैंक खाते खुलवाना शुरु कर दिया है लेकिन कर्मचारी भी अपने काम के लिए कैश लेना ही पसंद करते हैं. ऐसे में नोटबंदी से पैदा हुए हालात हीरा उद्योग के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण लग रहे हैं.