केंद्रीय बजट दशकों से फरवरी के अंतिम दिन पेश किया जाता रहा है, लेकिन इसमें जल्दी ही बदलाव आने की संभावना है. सरकार इसे पीछे खिसकाकर जनवरी के अंत में लाने पर विचार कर रही है, ताकि नए वित्त वर्ष की शुरुआत से पहले बजट संबंधी कार्य पूरे हो जाएं.
वित्त मंत्रालय बजट बनाने के पूरे कार्य को दुरूस्त कर रहा है. इसके तहत रेलवे के लिए अलग बजट पेश किए जाने की मौजूदा व्यवस्था को खत्म किया जा सकता है. बजट में उत्पाद शुल्क, सेवा कर तथा उपकरों का जिक्र न होने से बजट पत्र थोड़े हल्के हो सकते हैं.
गौरतलब है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने पर इन अप्रत्यक्ष करों को उसमें समाहित कर दिया जाएगा. साथ ही योजना और गैर-योजना व्यय में अंतर समाप्त हो सकता है और इसका स्थान पूंजी एवं राजस्व व्यय लेगा.
सूत्रों के अनुसार सरकार का विचार है कि बजट गतिविधियां हर साल 31 मार्च तक समाप्त हो जाना चाहिए. फिलहाल यह दो चरणों में फरवरी से लेकर मई के बीच होता है.
संविधान में बजट पेश किए जाने के बारे में कोई विशेष तारीख का जिक्र नहीं है. इसे सामान्य रूप से फरवरी के आखिरी दिन पेश किया जाता है और दो चरण में होने वाली संसदीय प्रक्रिया के तहत यह मई के मध्य तक चला जाता है.
सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय का विचार है कि अगर प्रक्रिया जल्दी शुरू हो तो लेखानुदान पारित कराने की जरूरत नहीं होगी और पूरा बजट एक चरण वाली प्रक्रिया में 31 मार्च से पहले पारित होगा. सूत्रों ने कहा कि सरकार के पास बजट को जनवरी के अंतिम सप्ताह संभवत: 31 जनवरी को पेश करने तथा पूरी प्रक्रिया 31 मार्च तक पूरी करने का प्रस्ताव है. राजस्व विभाग भी नवंबर-दिसंबर के बजाए सितंबर में विभिन्न पक्षों के साथ बजट पूर्व बैठकें करने पर विचार कर रहा है.
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