तेल की कीमतें सोमवार को 70 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गईं. नवंबर 2014 के बाद पहली बार तेल की कीमतों में इतना उछाल आया है. सीएनएन के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 2015 ईरान परमाणु समझौते से अलग होने की संभावनाओं की वजह से तेहरान को और अधिक कच्चा तेल निर्यात करने की अनुमति मिली, जो तेल की कीमतें के बढ़ने के कारणों में से एक है.
मजबूत वैश्विक मांग और ओपेक और रूस द्वारा तेल आपूर्ति की कटौती की वजह से भी कीमतें बढ़ी हैं. अमेरिकी तेल कीमतें इस साल की शुरुआत से 16 फीसदी से अधिक बढ़ गई हैं.
बता दें कि विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियों में तेजी से देश की आर्थिक वृद्धि दर 2018-19 में बढ़कर 7.2 प्रतिशत पर पहुंच जाने का अनुमान है. हालांकि, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और सरकार द्वारा अधिक कर्ज आर्थिक वृद्धि के लिए सिरदर्द बना रहेगा. परामर्श देने वाली संस्था डेलॉयट ने यह बात कही. डेलॉयट ने भारत आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट 2018 में कहा है कि रबी फसल की कटाई और सामान्य मानसून की संभावनाओं के चलते कृषि क्षेत्र में वृद्धि अनुमान से अधिक रहने की उम्मीद है, जिसका जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान होगा. कृषि क्षेत्र में 2.1 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत में वृद्धि की संभावनाएं हैं और 2018-19 में अर्थव्यवस्था बढ़कर 7.2 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी. औद्योगिकी उत्पादन में सुधार अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है. यह घरेलू मांग में मजबूती और वैश्विक व्यापार गतिविधियों में नए अवसर को दर्शाता है."