विदेशी आर्थिक क्षेत्रों (सेज) को प्रोत्साहित करने के लिए दिशानिर्देशों में देरी हो सकती है। इसकी वजह यह है कि वाणिज्य और वित्त मंत्रालयों में विभिन्न प्रस्तावों पर मतभेद है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘वित्त मंत्रालय को प्रत्येक मुद्दे पर आपत्ति है। चाहे जमीन का मुद्दा हो, बिजली संयंत्र लगाने, अल्प विकसित राज्यों में इकाइयों को प्रोत्साहन, सभी पर वित्त मंत्रालय सहमत नहीं है।’’ अधिकारी ने कहा कि सेज से निर्यात में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है। देश के कुल निर्यात में इसका हिस्सा 30 प्रतिशत हो गया है।
अधिकारी ने कहा, ‘‘निर्यात में बढ़ोतरी, भारी निवेश तथा लाखों लोगों को रोजगार। इन सभी बातों से साफ पता चलता है कि ये क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में योगदान कर रहे हैं। हमें इनका पुनरुद्धार करने की जरूरत है।’’ विशेष आर्थिक क्षेत्रों से निर्यात 2011-12 में बढ़कर 3.65 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो 2009-10 में 2.20 लाख करोड़ रुपये था। 2.02 लाख करोड़ रुपये के निवेश के साथ इन क्षेत्रांे में करीब 8,45,000 लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
सेज के निवेशकों का भरोसा कायम करने के लिए वाणिज्य मंत्रालय ऐसे डेवलपर्स को प्रोत्साहन देना चाहता है जो दूरदराज तथा कम विकसित क्षेत्रों में सेज परियोजना लगाना चाहते हैं। वाणिज्य मंत्रालय ने न्यूनतम जमीन की जरूरत के नियम को उदार बनाने का प्रस्ताव किया है। इसके अलावा मंत्रालय सेज की इकाइयों को भी उन निर्यात योजनाओं का लाभ देना चाहता है, जो पहले से सेज से बाहर की इकाइयों को मिला हुआ है। अभी तक 389 सेज परियोजनाएं अधिसूचित की गई हैं जिनमें से 153 परिचालन में हैं।