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विरासत में मिली समस्याओं से बढ़ा टाटा संस का खर्च : साइरस मिस्त्री

टाटा संस के अपदस्थ अध्यक्ष साइरस मिस्त्री ने मंगलवार को कहा कि वित्तीय अनिमितता और विरासत में मिली समस्याओं की वजह से इस औद्योगिक समूह के खर्चो में बढ़ोतरी हुई. मिस्त्री के कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा कि कुछ महत्वपूर्ण बदलाव रतन टाटा के पांच साल के कार्यकाल में तथा मिस्त्री के कार्यकाल में किए गए.
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NDTV Profit हिंदी10:55 AM IST, 16 Nov 2016NDTV Profit हिंदी
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टाटा संस के अपदस्थ अध्यक्ष साइरस मिस्त्री ने मंगलवार को कहा कि वित्तीय अनिमितता और विरासत में मिली समस्याओं की वजह से इस औद्योगिक समूह के खर्चो में बढ़ोतरी हुई. मिस्त्री के कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा कि कुछ महत्वपूर्ण बदलाव रतन टाटा के पांच साल के कार्यकाल में तथा मिस्त्री के कार्यकाल में किए गए.

बयान में कहा गया है, "2012 से लेकर पिछले पांच साल में समूह के कई केंद्र सदस्य बन गए थे, जो टाटा संस में गैरकार्यकारी की भूमिका में थे. इस प्रकार श्रीमान टाटा समेत सभी ने टाटा संस से क्षतिपूर्ति के रूप में वेतन के बजाए कमीशन लिया, जिससे समूह का खर्चा बढ़ा. लोगों की जानकारी में यह भी आना चाहिए कि टाटा संस के कई पूर्व
निवेशकों ने समूह की कंपनियों से अतिरिक्त समानांतर कमीशन प्राप्त किए."

मिस्त्री के बचाव में इस बयान में कहा गया है कि मिस्त्री को रिपोर्ट करने वाली जीसीसी ने केवल टाटा संस से ही पारिश्रमिक प्राप्त किया और मिस्त्री समेत जीसीसी के किसी भी सदस्य ने समूह की किसी अन्य कंपनी से कोई कमीशन नहीं लिया.

इस बयान में रतन टाटा के कार्यकाल में नीरा राडिया (वैष्णवी कम्यूनिकेशन) को सालाना 40 करोड़ का भुगतान करने का आरोप लगाया गया है, जिससे टाटा संस के खर्चे बढ़े. बयान में कहा गया है, "रतन टाटा उन्हें बदल कर अरुण नंदा (रिडिफ्यूजन एजलमैन) को पीआर के लिए लेकर आए, जिन्हें सालाना 60 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि पीआर अवसरंचना टाटा ट्रस्ट को भी सेवाएं देती थी, जबकि उसका भुगतान टाटा संस करती थी."

मिस्त्री के कार्यालय ने आगे कहा है कि पूर्व चेयरमैन रतन टाटा के कार्यालय सारा खर्च टाटा संस वहन करती थी, जो साल 2015 में 30 करोड़ रुपये था. इसमें कॉरपोरेट विमानों के इस्तेमाल का खर्च भी शामिल है. बयान में कहा गया है, "रतन टाटा के दोस्त की एयरोस्पेस कंपनी पियाजियो एरो संकट में थी, जिसके बाद टाटा ने इस कंपनी से निकलने का फैसला किया और इससे कंपनी को 1,150 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. इसके बाद हम रतन टाटा की आपत्तियों के बावजूद भरत वासानी और फारुख सूबेदार के प्रयासों से 1,500 करोड़ रुपये की वसूली करने में कामयाब रहे लेकिन वे इस कंपनी में निवेश बढ़ाने के पक्ष में थे. आज यह कंपनी दिवालिया होने के करीब है."

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