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ऐसी कंपनी जो सरकार की वजह से अस्तित्व में आई और सरकार की वजह से ही बंद हो गई

कैंपा कोला नाम, अब फिर मीडिया के जरिए लोगों के कानों में सुनाई दे रहा है. कुछ दिनों में कैंपा कोला कुछ घरों तक पहुंचेगा और फिर इसकी किस्मत. किस्मत इसके टेस्ट पर निर्भर करती है क्योंकि बैकअप में रिलायंस है. लोगों को इसका टेस्ट पसंद आया तो फिर इसे मार्केट लीडर बनने से कोई रोक नहीं सकता है. रिलायंस ने पिछले साल इस कंपनी को 22 करोड़ में खरीदा है.
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NDTV Profit हिंदी03:12 PM IST, 10 Mar 2023NDTV Profit हिंदी
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कैंपा कोला नाम, अब फिर मीडिया के जरिए लोगों के कानों में सुनाई दे रहा है. कुछ दिनों में कैंपा कोला कुछ घरों तक पहुंचेगा और फिर इसकी किस्मत. किस्मत इसके टेस्ट पर निर्भर करती है क्योंकि बैकअप में रिलायंस है. लोगों को इसका टेस्ट पसंद आया तो फिर इसे मार्केट लीडर बनने से कोई रोक नहीं सकता है. रिलायंस ने पिछले साल इस कंपनी को 22 करोड़ में खरीदा है. कोल्ड ड्रिंक्स के बाजार में पेप्सी और कोका कोला का कब्जा है. इस बाजार में उतरने का फैसला बहुत जोखिम भरा है लेकिन उचित प्लानिंग और प्रोडक्ट एनहैंसमेंट के चलते बाजार में अपनी जगह बनाई भी जा सकती है और कब्जेदारों को दबाया भी जा सकता है. 

आजादी के बाद ही कोका कोला की एंट्री

भारत में आजादी के कुछ ही सालों में कोका कोला ने भारत में एंट्री की. कोका कोला की एंट्री के साथ ही बाजार में लोगों को इसका टेस्ट काफी पसंद आया. पसंद भी कुछ ऐसा कि लोग इन कोल्ड ड्रिंक्स के दीवाने हो गए. करीब 30 साल बाद जब देश में इमरजेंसी खत्म हुई तो जनता पार्टी सरकार ने बाजार के कुछ नियम कड़े किए. कंपनी को वह पसंद नहीं आया. सरकार ने कंपनी को अपना फॉर्मूला भारतीय कंपनी को देने तक को कहा. कंपनी ने इनकार कर दिया. 

कोका कोला का टेस्ट जुबान पर चढ़ा
रईस लोगों को ये काफी पसंद आई और 1970 का दशक आते-आते ये आम लोगों की जुबां पर भी चढ़ गई. मगर जब आपातकाल लगा तो उसके बाद जनता सरकार ने इसे भारत से बाहर का रास्ता दिखा दिया. लोगों को सॉफ्ट ड्रिंक का चस्का लग चुका था.

77 की एंट्री और बंद होने की वजह

ऐसे में बाजार में सॉफ्ट ड्रिंक बनाने वाली एक सरकारी कंपनी डबल सेवन (77) ने कदम रखा. इसके नाम 77 के पीछे भी एक कहानी है. वो भी यह, जब कोका कोला चली गई तब उस कंपनी लगे भारतीय लोग बेरोजगार हो गए. अब इन लोगों पर सरकार को रोजगार देने के दबाव आया. दो सरकार ने एक तीर से दो निशाने साधे. एक इमरजेंसी के खत्म होने का और दूसरा लोगों को नौकरी देने का.

बाजार में ऐसी घटनाएं होती रही हैं. कंपनी ने भारत में अपना कारोबार बंद करने का फैसला किया. अचानक कोका कोला का कारोबार भारत में बंद हुआ. बाजार में कंपनी के काफी लोकप्रिय उत्पाद गायब हो गए तो लोगों में सरकार के फैसले को लेकर नाराजगी भी दिखने लगी. किसी भी प्रोडक्ट को बनाना और लोगों के पसंद आने और फिर बाजार में चलने में फर्क होता है. लोगों को 77 के सॉफ्ट ड्रिंक का टेस्ट पसंद नहीं आया. फिर जनता सरकार गई और वापसी हो गई इंदिरा गांधी की जिसने 77 को इतिहास बना दिया. ये अजब दुविधा का दौर था कि कोका कोला भारत से बोरिया बिस्तर बांध चुकी थी और डबल सेवन लोगों को पसंद नहीं आ रही थी. तभी मार्केट में दस्तक दी कैंपा कोला ने. 

कैसे छा गई कैंपा कोला

इस बीच 1977 में एक नई सॉफ्ट ड्रिंक कंपनी की एंट्री होती है जिसका नाम कैंपा कोला था. इसी समय बाजार में एक अन्य भारतीय ब्रैंड थम्स अप भी काफी लोकप्रिय हो गया था. कैंपा को इससे थोड़ी टक्कर मिली. उधर कोका कोला के जाने के बाद लोगों में उसका टेस्ट अभी भी लोकप्रिय था और ऐसे में लोगों की इच्छा को देखते हुए सरकार बाजार में डबल सेवन 77 नाम की कोल्ड ड्रिंक लेकर आई. लेकिन लोगों को इसका टेस्ट कुछ जमा नहीं. ऐसे में कैंपा कोला लोगों की पहली पसंद बन गया और इसका बिजनेस तेजी से बढ़ा. 

1991  में बाजार खुलने के साथ ही कैंपा को लग गया ग्रहण

लेकिन 1991 में नरसिंह राव की सरकार में वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने बाजार को खोलने की शुरूआत की. और एक बार फिर कोका कोला ने भारतीय बाजार में एंट्री की. इस बार कोका कोला के साथ पेप्सी ने भी धमाकेदार एंट्री की. दोनों वैश्विक कंपनियों ने कैंपा कोला को दबा दिया और कैंपा का बाजार सिकुड़ता ही गया. बाजार में कदम जब कंपनी के उखड़ने शुरू हुए तब 2000-01 में कंपनी के दिल्ली के ऑफिस और बॉटलिंग प्लांट बंद करना पड़ा. हरियाणा के कुछ हिस्से में कंपनी कारोबार करती रही.

क्या कैंपा को दौड़ा पाएगी रिलायंस

अब कंपनी को रिलायंस ने टेकओवर कर लिया है. कैंपा कोला को 22 करोड़ में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने खरीद लिया है. इससे मार्केट की बादशाह-कोला कोला और पेप्सी को कड़ी टक्कर मिलनी तय मानी जा रही है. रिलायंस ने 50 साल पुराने ब्रैंड पर दांव खेला है. इतने पुराने ब्रैंड के साथ दांव खेलने का सबसे बड़ा फायदा कंपनी को यह है कि ब्रैंडिंग की ज्यादा चिंता नहीं करनी होगी. बात केवल यह है कि कंपनी किस तरह से पहली भूलों को दूर करती है जब इस कंपनी का एकछत्र राज था. 

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