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भारतीय मूर्तिकारों ने निकाला 'ड्रैगन' का दम, मूर्तियों के बाजार से चीन 'गायब'

भारतीय मूर्तिकारों ने इस बार ड्रैगन का दम निकाल दिया है. दिवाली के लिए सजे बाजारों से चीन से आयातित देवी देवताओं की मूर्तियां यानी 'गॉड फिगर' गायब हैं और बाजार में भारतीय मूर्तिकारों द्वारा बनाई गई मूर्तियां छाई हुई हैं.
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NDTV Profit हिंदी03:40 AM IST, 24 Oct 2016NDTV Profit हिंदी
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भारतीय मूर्तिकारों ने इस बार ड्रैगन का दम निकाल दिया है. दिवाली के लिए सजे बाजारों से चीन से आयातित देवी देवताओं की मूर्तियां यानी 'गॉड फिगर' गायब हैं और बाजार में भारतीय मूर्तिकारों द्वारा बनाई गई मूर्तियां छाई हुई हैं.

पिछले कुछ साल से दिवाली पर देवी-देवताओं की मूर्तियों के बाजार पर 'चीनी सामान' का दबदबा था. ग्राहक भी बेहतर फिनिशिंग और कम दामों वाली चीन से आयातित मूर्तियों की मांग करते थे, लेकिन इस बार हवा का रख बदला दिखाई दे रहा है. ग्राहक चीनी माल के बजाय स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता दे रहा है.

राजधानी के प्रमुख थोक बाजार सदर बाजार के कारोबारियों का कहना है कि इस बार बाजार में चीन से आयातित 'गॉड फिगर' की उपस्थिति काफी कम है. भारतीय कारीगरों ने अधिक आकषर्क और बेहतर फिनिशिंग वाली मूर्तियों से बाजार को पाट दिया है जिससे 'ड्रैगन' गायब हो गया है. सदर बाजार में पिछले कई दशक से 'गिफ्ट आइटम' का कारोबार करने वाले स्टैंडर्ड ट्रेडिंग के सुरेंद्र बजाज बताते हैं, "इस बार एक अच्छा रुख दिखाई दे रहा है. कम से कम देवी देवताओं की मूर्तियों के बाजार से चीन पूरी तरह गायब है.

ग्राहक भी भारतीय मूर्तियों की मांग कर रहे हैं." बजाज कहते हैं कि इस बार मुख्य रूप से बाजार में दिल्ली के पंखा रोड, बुराड़ी, सुल्तानपुरी, गाजीपुर तथा अन्य इलाकों से मूर्तियां आई हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश का मेरठ भी मूर्तियों का बड़ा केन्द्र है, जहां से मूर्तियां दिल्ली और आसपास के राज्यों में आती हैं.

दिल्ली व्यापार संघ के अध्यक्ष देवराज बवेजा बताते हैं कि चीन के विनिर्माता पहले भारतीय बाजार में आकर सर्वे करते हैं और उसके बाद वे सस्ते दामों पर अधिक आकषर्क उत्पाद पेश कर देते हैं. बवेजा ने कहा कि दिवाली पर मुख्य रूप से गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों की मांग रहती है. इसके अलावा रामदरबार, हुनमान जी, ब्रह्मा-विष्णु-महेश, शिव-पार्वती, कृष्ण और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियों से भी बाजार पटे हैं. इन मूर्तियों की कीमत 100 रुपये से शुरू होती है. बाजार में 5,000 रुपये तक की आकषर्क मूर्तियां उपलब्ध हैं.

बवेजा के अनुसार इस बार हमारे मूर्तिकारों ने भी चीन की तकनीक व कला को समझ लिया है और अब वे चाइनीज विनिर्माताओं की टक्कर के उत्पाद पेश कर रहे हैं. कारोबारियों का कहना है कि इन मूर्तियों के बाजार पर चीन का हिस्सा 60-70 प्रतिशत तक पहुंच गया था, लेकिन इस बार यह सिर्फ 10 प्रतिशत तक रह गया है. कनफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट‌) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल कहते हैं कि चाइनीज उत्पादों के बहिष्कार के अभियान का असर दिख रहा है. अब ग्राहक भी चाहते हैं कि वे देश में बने उत्पादों से दिवाली पर घर की सजावट करें.

खंडेलवाल के अनुसार, इस बार व्यापारी भी अधिक से अधिक भारतीय उत्पादों को बेचने में रुचि दिखा रहे हैं. हरियाणा नॉवल्टी हाउस के पवन कहते हैं कि इस बार बाजार पर पूरी तरह दिल्ली और आसपास के इलाकों से बनी मूर्तियों का कब्जा है. उन्होंने कहा कि हमारे विनिर्माता फिनिशिंग और खूबसूरती में चीन से मात खा जाते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हैं.

रिटेलर अनुराग के अनुसार कभी समय था कि चीन में बनी मूर्तियां भारतीयों के त्योहार पर छाई हुई थीं. पर अब ऐसा नहीं है. चीन के उत्पाद बेशक आकषर्क दिखते हैं, लेकिन वे अधिक टिकाऊ नहीं होते और जल्द उनको लेकर शिकायतें आने लगती हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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