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2जी मामला : राजा ने वाहनवती पर सच नहीं बताने का आरोप लगाया

2जी स्पेक्ट्रम मामले के मुख्य आरोपी पूर्व संचारमंत्री ए राजा ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को बताया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नीतिगत फैसलों के बारे में जानकारी थी और अटार्नी जनरल जीई वाहनवती उनके खिलाफ सिलसिलेवार असत्य बता रहे हैं।
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NDTV Profit हिंदी05:24 PM IST, 24 Mar 2013NDTV Profit हिंदी
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2जी स्पेक्ट्रम मामले के मुख्य आरोपी पूर्व संचारमंत्री ए राजा ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को बताया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नीतिगत फैसलों के बारे में जानकारी थी और अटार्नी जनरल जीई वाहनवती उनके खिलाफ सिलसिलेवार असत्य बता रहे हैं।

जेपीसी के सामने निजीतौर पर पेश नहीं हो सके राजा ने समिति की प्रश्नावली के जवाब में कहा है कि प्रधानमंत्री और तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी को लाइसेंस की नीति के संबंध में जानकारी दी गई थी।

राजा ने 17 पन्नों के अपने नोट में कहा है कि उनके और प्रधानमंत्री के बीच दूरसंचार क्षेत्र से जुड़े अनेक मुद्दों पर 2 नवंबर, 2007 को पत्र व्यवहार हुआ था और उसके बाद इस विषय पर व्यक्तिगत रूप से भी दोनों की वार्ता हुई।

उन्होंने जेपीसी को 13 मार्च को भेजे अपने नोट में कहा, इन चर्चाओं में यह सहमति बनी कि संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री तत्कालीन विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी से बातचीत करेंगे, क्योंकि वह स्पेक्ट्रम खाली करने पर बनाए गए मंत्रिसमूह की अध्यक्षता कर रहे थे। राजा ने कहा कि अतिरिक्त स्पेक्ट्रम के आवंटन के आधार मानदंड, दोहरी प्रौद्योगिकी के विषय और नए लाइसेंसों के विषय पर उनके और मुखर्जी के बीच दिसंबर, 2007 में बातचीत हुई थी।

जनवरी, 2008 में आवंटन किए जाने से पहले के सिलसिलेवार घटनाक्रम का ब्योरा देते हुए राजा ने कहा कि तत्कालीन सालिसिटर जनरल वाहनवती भी इन वार्ताओं के दौरान मौजूद थे और दूरसंचार विवाद निवारण तथा अपीली प्राधिकरण (टीडीएसएटी) के सामने भी ये मुद्दे थे।

राजा ने कहा, जाहिर है कि संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा 26.12.2007 को माननीय प्रधानमंत्री को भेजा गया पत्र और कुछ नहीं बल्कि सालिसिटर जनरल के भेजे गए नोट और उसके बाद उनके तथा विदेशमंत्री एवं संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के बीच बातचीत को संयुक्त रूप से भेजा जाना था। राजा ने वाहनवती द्वारा जेपीसी के सामने दिए गए इस बयान पर उन्हें आड़े हाथों लिया कि 2जी लाइसेंसों के संबंध में विवादास्पद प्रेस विज्ञप्ति को 2008 में एक अलग कलम से पूर्व संचार मंत्री द्वारा अंतिम समय में बदल दिया गया था।

राजा ने कहा कि सालिसिटर जनरल ने इसी प्रेस विज्ञप्ति का दो साल तक अलग-अलग अदालतों में बचाव किया और इसकी प्रामाणिकता पर कोई सवाल नहीं उठाया।

उन्होंने कहा कि मुखर्जी से बातचीत के उद्देश्य से वाहनवती ने एक नोट तैयार किया था, जिसमें अतिरिक्त स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए ग्राहक आधार मानदंड, दोहरी प्रौद्योगिकी का विषय, स्पेक्ट्रम आवंटन का तरीका और नए दूरसंचार लाइसेंसों का मुद्दा था।

राजा ने वाहनवती के नोट का हवाला देते हुए जेपीसी से कहा, इस तरह सरकार लंबित आवेदनों की छानबीन के लिए बाध्य थी और यदि आवेदक योग्य पाए गए तो पहले..आओ.पहले..पाओ के आधार पर लाइसेंस जारी करने के लिए बाध्य थी। राजा ने कहा कि वाहनवती के नोट के आधार पर मुखर्जी ने भी 26 दिसंबर, 2007 को अपना खुद का नोट तैयार किया और दोनों दस्तावेज प्रधानमंत्री को भेजे।

उन्होंने कहा कि उसी दिन उन्होंने भी मुखर्जी तथा वाहनवती से बातचीत के आधार पर प्रधानमंत्री को एक पत्र भेजा।

जेपीसी के समक्ष गवाही पर अटार्नी जनरल को आड़े हाथों लेते हुए राजा ने कहा कि वाहनवती का यह दावा सही नहीं था कि वह सरकार के किसी नीतिगत फैसले में शामिल नहीं थे। मुखर्जी को भेजे गए वाहनवती के नोट में दूरसंचार विभाग की संपूर्ण नीति का सार था। राजा ने कहा कि वाहनवती की यह दलील बेकार और अविश्वसनीय है कि दूरसंचार विभाग ने प्रेस विज्ञप्ति के साथ उनसे यह जानने के लिए संपर्क किया था कि क्या लाइसेंस के मुद्दे पर किसी अदालत में कोई स्थगन है।

द्रमुक सांसद ने जेपीसी को बताया, यह तथ्यात्मक जानकारी भलीभांति दूरसंचार विभाग के संज्ञान में थी और नीति पर एसजी की राय पूछी जा रही थी। ‘संशोधित प्रेस विज्ञप्ति को स्वीकार किया जाता है’, इस वाक्य को फाइल में कब रिकॉर्ड किया गया था? जेपीसी के इस विशिष्ट प्रश्न के जवाब में राजा ने कहा कि वाहनवती को फाइल भेजे जाने से पहले इसे लिखा गया था।

वाहनवती ने जेपीसी में कहा था कि 2जी लाइसेंसों से जुड़े प्रेस नोट को राजा ने आखिरी समय में एक अलग कलम से बदल दिया था।

राजा ने कहा, दूरसंचार विभाग के अधिकारियों द्वारा रखे गए नोट पर मेरी मंजूरी और उन्हें सालिसिटर जनरल की राय लेने का निर्देश देने के बाद मेरा ध्यान इस बात पर गया कि प्रेस विज्ञप्ति के मसौदे का अंतिम पैराग्राफ फाइल पर दी गई मंजूरी और प्रधानमंत्री को पूर्व में दिए जा चुके संदेश के अनुरूप नहीं था। उन्होंने कहा, इससे लाइसेंस प्रदान करने का पूरी तरह नया तरीका ही इजाद हो जाता। इसलिए मैंने अंतिम पैराग्राफ हटा दिया और फाइल में भी यह बात दर्ज की कि प्रेस विज्ञप्ति को संशोधित स्वरूप में स्वीकार किया जा रहा है। मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि सालिसिटर जनरल को फाइल भेजे जाने से पहले मेरा नोट लिखा गया था।

‘स्वीकृत’ शब्द के लिए अलग कलम के इस्तेमाल पर राजा ने दलील दी कि यह पूरी तरह मौके की बात थी कि उन्होंने दो वाक्य लिखने के लिए अपनी मेज पर रखे कई सारे पेन में से एक उठा लिया। उन्होंने कहा, इस तथ्य के आधार पर जालसाजी या मनगढ़ंत बात रचने का इतना बड़ा दावा करना बिना किसी कानून की समझ के किया गया। राजा ने यह दावा भी किया कि वाहनवती प्रेस विज्ञप्ति और उसका अंतिम पैराग्राफ हटाने के प्रभाव से जुड़े मुद्दे से 2008, 2009 में टीडीएसएटी, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में अनेक वादों में निपटे थे।

पूर्व मंत्री ने कहा, और उन्होंने कभी कहीं यह नहीं कहा कि यह प्रेस विज्ञप्ति उनके द्वारा देखी गई प्रेस विज्ञप्ति से अलग थी। इसके विपरीत उन्होंने संशोधित प्रेस विज्ञप्ति का बचाव ही किया।

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