गुजरात चुनाव बीजेपी के लिए पूरी तरह से अमित शाह का शो..

2016 में आनंदीबेन पटेल की जगह उनके वफादार के रूप में जाने जाने वाले विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद अमित शाह ने खुद को गुजरात की राजनीति से दूर कर लिया था.

गुजरात चुनाव बीजेपी के लिए पूरी तरह से अमित शाह का शो..

अमित शाह गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कमान संभाल रहे हैं.

गुजरात चुनाव में सबसे ज्यादा नजर जिस व्यक्ति पर है, वो शायद अमित शाह हैं. सूत्रों का कहना है कि भाजपा के भीतर यह धारणा थी कि आम आदमी पार्टी द्वारा पेश की जा रही चुनौती को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी माने जाने वाले मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कम करके आंका, जिसके बाद अमित शाह ने बीजेपी के चुनाव अभियान की कमान संभाली.

आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल द्वारा चलाए जा रहे बड़े स्तर पर चुनाव अभियान ने शुरू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सबसे भरोसेमंद सहयोगी अमित शाह को चिंतित किया था. अब जब अमित शाह ने चुनाव अभियान को संभाल लिया, तो उन्होंने सभी फैसले लेने के लिए अपनी व्यावहारिक शैली का इस्तेमाल किया.

कौन से विधायक पार्टी के लिए कमजोर कड़ी साबित हो सकते हैं, उन्हें उम्मीदवार के रूप में चुनने, या नहीं चुनने को लेकर खुली छूट दी गई और यह भी उनके विवेक पर छोड़ दिया गया कि, किसे स्टार प्रचारक के रूप में गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए उतारा जाए. (इसमें उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ शामिल हैं, जहां अमित शाह और उनके बीच एक व्यापक आधार को लेकर रस्साकशी है.) अगर योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक पूंजी, जनाधार रखते हैं, जिस पर उनका नियंत्रण है, तो बहुत स्पष्ट है कि अमित शाह को किसी भी संभावित राजनीतिक मुकाबले के लिए गुजरात पर अपनी पकड़ बनानी होगी.

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अमित शाह और योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)

अमित शाह हमेशा ही माइक्रो मैनेजमेंट के साथ चुनाव लड़ते रहे हैं. भाजपा के सूत्रों ने मुझे बताया है कि गुजरात भाजपा के अध्यक्ष सी.आर. पाटिल को गृह मंत्री द्वारा नियमित रूप से उनकी सिफारिशों को नजरअंदाज किए जाने से बेहद मुश्किल हो रही है. इसके कारण कुछ स्पष्ट बदलाव हुए हैं. सी.आर. पाटिल ने स्थानीय मीडिया को उनके सिफारिश विधायकों की सूची लीक करने की गलती के बाद अब बहुत कम प्रोफ़ाइल रखा है. इस घटना ने अमित शाह को नाराज कर दिया और जाहिर तौर पर अंतिम सूची में शामिल लोगों में वो जगह नहीं बना पाए, इससे उन्हें साफ संदेश मिला.

सूरत में कुमार कनानी और पूर्णेश मोदी को सीआर पाटिल के साथ प्रतिद्वंद्विता के बावजूद दोहराया गया. अहमदाबाद में मौजूदा 21 विधायकों में से सिर्फ दो को टिकट मिला है. ये उम्मीदवार चयन में अमित शाह के माइक्रो मैनेजमेंट के कुछ उदाहरण हैं. 

गृहमंत्री हफ्ते में तीन दिन अपने गृह राज्य में बिता रहे हैं. उनके फोन में हर सीट का बूथ स्तर का डेटा है. उनसे मिलने वाले विधायकों से उम्मीद की जाती है कि वे आंकड़ों के साथ बात करेंगे, जिसे वह पसंद करते हैं.

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सीआर पाटिल और अमित शाह

यह एक कॉन्सपिरेसी थ्योरी हो सकती है, लेकिन कई बीजेपी नेताओं ने मुझे बताया कि अमित शाह ने जान-बूझकर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को बड़ा होने दिया, ताकि बीजेपी चुनावी मशीनरी के भीतर किसी भी तरह की शालीनता को खत्म करने की धमकी के रूप में लिया जाए, और यह सुनिश्चित करने के लिए कि मतदाता भाजपा के साथ खड़े होने के लिए प्रेरित हों. जो एक राज्य में पिछले 27 सालों से है.

गुजरात में आम आदमी पार्टी की, कांग्रेस के वोट बैंक में बड़ा सेंध मारने की क्षमता के बारे में प्रचार को देखते हुए, भाजपा ने वास्तव में अंतिम चरण में बड़े स्तर पर चुनाव प्रचार किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज चार रैलियों को संबोधित किया है, अब तक की कुल संख्या 16 है. वहीं अमित शाह की एक छाप असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को 'प्राइम टाइम' में राहुल गांधी पर हमले की जिम्मेदारी मिली है.

स्थानीय भाजपा नेताओं और कैडर के साथ बैठकों में, अमित शाह बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि मतदाताओं और जीत को कभी गारेंटेड नहीं लिया जाना चाहिए. इनके लिए वो आम आदमी पार्टी और शांत कांग्रेस दोनों के खतरे का हवाला देते हैं.

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सूरत में हिमंता बिस्वा सरमा

अमित शाह ने उन 'स्टार प्रचारकों' के पंख कतर दिए हैं, जिन्हें वह पसंद नहीं करते हैं और जो केंद्रीय मंत्री जमीन से ऊपर हवा में रहते हैं. उन्हें रैलियों को संबोधित करने के लिए नियुक्त किया गया है, लेकिन बहुत कम ड्यूटी लगाई गई है.

वहीं गांधीनगर से उनके लंबे समय से चले आ रहे पोलिंग एजेंट हर्षद पटेल को उम्मीदवार बनाया गया है. सूत्रों का कहना है कि 2017 में अमित शाह के कहने पर हर्षद पटेल के टिकट की घोषणा की गई थी, लेकिन आनंदीबेन पटेल जीत गईं और मौजूदा विधायक अरविंद पटेल को दोहराया गया. अमित शाह ने 14 नवंबर को हर्षद पटेल और वेजलपुर सीट से चुनाव लड़ रहे शाह के एक और पसंदीदा अमित ठाकेर के चुनाव कार्यालय का दौरा भी किया था. ये दोनों सीटें अमित शाह की गांधीनगर लोकसभा सीट का हिस्सा हैं.

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गुजरात के बोटाद में जनसभा को संबोधित करते पीएम मोदी

2016 में आनंदीबेन पटेल की जगह उनके वफादार के रूप में जाने जाने वाले विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद अमित शाह ने खुद को गुजरात की राजनीति से दूर कर लिया था. इससे यह स्पष्ट हो गया कि उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाए जाने के बाद भी आनंदीबेन पटेल की अमित शाह से लड़ाई जारी रही. कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान विजय रूपानी के खराब प्रदर्शन के बाद भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया गया, जो आनंदीबेन खेमे से हैं. पटेल ने मोदी से अपनी निकटता के कारण गुजरात के सभी प्रशासनिक निर्णयों में पीएमओ को अंतिम निर्णय लेने दिया.

नरेंद्र मोदी के केंद्र में आने के बाद भाजपा के तीन मुख्यमंत्रियों के बदलने के बावजूद, गुजरात के लिए पार्टी का पूरा अभियान ब्रांड मोदी पर आधारित है. अमित शाह को भाजपा के सर्वश्रेष्ठ चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशंसा मिली है, जो गुजरात के मतदाताओं के लिए गर्व की बात है.

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(स्वाति चतुर्वेदी एक लेखिका और पत्रकार हैं, उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस, द स्टेट्समैन और द हिंदुस्तान टाइम्स के साथ काम किया है. ये लेखक के निजी विचार हैं.)