क्या चुनावों की निष्पक्षता बनाए रखने की कोश‍िशें पर्याप्त हैं?

इस चुनाव में कुछ भी हो जा रहा है. मतलब आज कोलकाता में पोलिंग होनी थी, खबर आती है कि उलूबेरिया के सेक्टर अफसर तपन सरकार रिज़र्व EVM लेकर चले गए और अपने एक रिश्तेदार के यहां सो गए. वो रिश्तेदार तृणमूल कांग्रेस के नेता निकले. मतलब कुछ भी. EVM लिया और समोसा खाने चले गए. EVM लिया मामा जी से मिलने चले गए. दोस्त की सगाई में चले गए और खा पी कर सो गए.

आधा-अधूरा और नाटक पूरा. भारत की राज्य व्यवस्था को परिभाषित करने के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता. आधा-अधूरा और नाटक पूरा. आप जानेंगे कि कैसे कोरोना को लेकर सरकारें अपना काम आधा-अधूरा और नाटक पूरा करती रही हैं. पहले चुनाव पर जिसका ताल्लुक भी कोरोना से ही है. इस चुनाव में कुछ भी हो जा रहा है. मतलब आज कोलकाता में पोलिंग होनी थी, खबर आती है कि उलूबेरिया के सेक्टर अफसर तपन सरकार रिज़र्व EVM लेकर चले गए और अपने एक रिश्तेदार के यहां सो गए. वो रिश्तेदार तृणमूल कांग्रेस के नेता निकले. मतलब कुछ भी. EVM लिया और समोसा खाने चले गए. EVM लिया मामा जी से मिलने चले गए. दोस्त की सगाई में चले गए और खा पी कर सो गए. ऐसा करने वाले तपन सरकार अकेले निकले. वर्ना मतदान के लिए लोग गोल घेरे में खड़े रह जाते और और मतदान अधिकारी रिश्तेदार के यहां खर्राटे भर रहे होते. अगली बार चुनाव आयोग को अपने दिशानिर्देशों में यह भी शामिल करना चाहिए कि मतदान अधिकारी को कहां कहां नहीं सोना है और किस किस की गाड़ी से लिफ्ट नहीं लेनी है. असम से खबर आती है कि एक मतदान केंद्र पर कुल 90 वोट हैं लेकिन पड़ गए 181.

इन खबरों को पढ़ कर तो किसी का भी कंफ्यूज़न दूर हो जाए कि 90 की जगह 181 वोट पड़ रहे हैं तो क्या होने वाला है. इस मामले में छह मतदान अधिकारी सस्पेंड हुए हैं. असम के डीमा हसाओ ज़िले में एक बूथ पर 90 ही वोट थे और 181 वोट पड़ गए. आयोग ने बताया है कि मुख्य मतदान केंद्र के मतदाताओं को भी सहायक मतदान केंद्र पर वोट डालने दिया गया जहां यह EVM था. 6 पोलिंग अफसर थे क्या इनमें से किसी को नहीं लगा कि ऐसा करना ग़लत है. कमाल है सभी 6 पोलिंग अफसर एक समान सोचने वाले निकले. इस मतदान केंद्र पर दोबारा मतदान के आदेश हुए हैं.

अपवाद-स्वरूप इन ग़लतियों से चुनाव आयोग की छवि कोई बहुत बेहतर तो नहीं होती होगी. बीजेपी विधायक की कार में EVM मिलने पर प्रेस रिलीज़ आई कि पीठासीन अधिकारी की बेवकूफी से ऐसा हुआ. कोई सो जा रहा है, कोई बेवकूफी कर रहा है, कोई 90 की जगह 181 वोट गिरवा दे रहा है.

एक आदेश आता है कि बीजेपी नेता हिमंता बिस्वा सरमा 48 घंटे चुनाव प्रचार नहीं करेंगे. उन पर आरोप है कि उन्होंने बोडो पिपुल्स फ्रंट के उम्मीदवार को NIA के द्वारा जेल भिजवाने की धमकी दी थी. आदेश जारी हुआ पूरा लेकिन लागू होने की बात आई तो आदेश आधा हो गया. ख़बरों के मुताबिक कारण बताया गया कि हिमंता ने गंभीरता पूर्वक बिना शर्त माफी मांगी है इसलिए सज़ा आधी कर दी गई है. हैं न कमाल. माफी मांग ली मतलब ग़लती भी तो मांन ली. बोडो पिपुल्स फ्रंट बीजेपी से अलग हो कर कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ रहा है. एक दिन ख़बर आती है कि इसके उम्मीदवार रंगजा खुंगुर बसुमतारी का अता-पता नहीं चल रहा है. फिर वो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के सामने बीजेपी में शामिल होते हुए दिखाई देते हैं. कौन जानता है कि NIA जैसी एजेंसी का काम रहा होगा या बसुमतारी ने स्वेच्छा से बीच चुनाव में पार्टी बदल ली? BPF और कांग्रेस ने आयोग से मांग की कि इस विधानसभा में चुनाव रद्द हो और फिर से चुनाव का नोटिफ़िकेशन जारी हो. ये भी मांग की कि भाजपा के अध्यक्ष JP नड्डा, राज्य अध्यक्ष रणजीत कुमार दास, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मुख्यमंत्री सरबानंद सोनोवाल और हिमंता बिस्वा सरमा के ख़िलाफ़ FIR की जाए.

कोई उम्मीदवार प्रचार के बीच में दूसरे दल में चला जाता है. जिस दल से जाता है उसका चांस मतदान से पहले खत्म हो जाता है. क्या ऐसा करने से मतदाता का विकल्प ख़त्म नहीं हो जाता है? क्या बोडो पिपल्स फ्रंट की मांग सही नहीं थी कि उक्त विधानसभा क्षेत्र में चुनाव रद्द हो? चुनाव शुरू नहीं होता है कि विपक्ष के उम्मीदवारों के यहां छापे पड़ने लगते हैं. क्या यह फ्री एंड फेयर चुनाव का हिस्सा है? ज्यादातर छापे विरोध दल के नेताओं के यहां पड़ते हैं. वही हाल कोरोना को लेकर है.

आपने वह तस्वीर तो देखी होगी. दिल्ली में प्रधानमंत्री कोविड के हालात को लेकर बैठक कर रहे हैं. कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर चिन्तित हैं. लेकिन उन्हीं प्रधानमंत्री की रैली की तस्वीर देखकर क्या आप बता सकते हैं कि रैली में आए लोगों ने कोविड के नियमों का पालन किया है? किसी ने मास्क पहना है? प्रधानमंत्री चिन्तित हैं कि इन्हें कोरोना हो गया तो? चुनाव शुरू होते ही हर दल के नेता भीड़ की तस्वीरों को ट्वीट करने लगे और अपनी लोकप्रियता की ताकत दिखाने लगे. उन तस्वीरों में मास्क नदारद था. अब तो लोग मज़ाक करने लगे हैं कि कोरोना को ख़त्म करना है तो चुनाव करा दो. जहां चुनाव होता है वहां कोरोना का कोई डर नहीं होता है. कोई नाइट कर्फ्यू नहीं होता है. कोई लॉकडाउन नहीं होता है. मंच से प्रधानमंत्री को दिखता ही होगा कि कोई मास्क पहन कर नहीं आया है. क्या प्रधानमंत्री ने अपनी चुनावी सभाओं में लगातार दो गज की दूरी और मास्क पहनने की अपील की? हमने उनके हाल के तीन चार भाषणों का अध्ययन किया. उन भाषणों में इसका तो ज़िक्र है कि कोरोना के समय गरीबों को क्या क्या दिया लेकिन इस बात की अपील नहीं है कि कोरोना से बचने के लिए क्या करना चाहिए या उनकी सभा में सभी को मास्क पहन कर आना चाहिए.

फिर अचानक आप ऐसी तस्वीरें देखते हैं. मतदान के दिन सुबह सुबह उसी राज्य के लोगों को गोल घेरे में खड़ा कर दिया गया है.  सैनिटाइज़र भी दिखता है और मास्क भी दिखने लगता है. ऐसा लगता है कि आज मतदान के साथ साथ मास्क पहनने की कोई परेड होने वाली है. अगर यह ज़रूरी है तो फिर चुनावी रैलियों में क्यों नहीं ज़रूरी था? इन्हीं लोगों ने नियमों को लेकर क्या श्रद्दा होगी जो यह देखते रहे कि दिनों हफ्तों रैलियों और प्रचारों में कोविड के नियमों का कुछ पालन नहीं होता है, आज मतदान के दिन सबसे सावधान और विश्राम कराया जा रहा है. आखिर चुनाव आयोग ने कोरोना को लेकर दिशानिर्देश जारी किए हैं उसका पालन केवल मतदान के दिन ही क्यों होता है.

ऐसा नहीं है कि चुनाव आयोग ने कोविड से बचने के लिए निर्देश जारी नहीं किए हैं. इन निर्देशों के मुताबिक चुनाव से जुड़ी हर गतिविधि में हर किसी ने मास्क पहना होना चाहिए. क्या आपको इसका पालन होता दिख रहा है? नियम तो यह भी है कि सभाओं में लोगों के आने के लिए जिले के निर्वाचन अधिकारी को ऐसे ग्राउंड का चयन करना होगा जिसके एंट्री और एग्ज़िट के द्वार स्पष्ट हों. ऐसे चिन्ह बना दिए जाएं जिनसे सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन हो सके. पार्टी और उम्मीदवार पर इस बात की ज़िम्मेदारी होगी कि कोविड से सम्बंधित सभी नियमों का पालन हो. आप तस्वीरों को देख कर बताएं कि क्या इनका पालन यहां हो सकता है. हुआ है?

एक निर्देश है कि रोड शो के लिए गाड़ियों के काफिले को हर पांच गाड़ियों के बाद तोड़ा जाए. दो काफिले के बीच काफी दूरी हो. गृहमंत्री अमित शाह के रोड शो की तस्वीरों में क्या आपको भीड़ में ऐसा होता हुआ कुछ भी दिखता है? क्या चुनाव आयोग इन नियमों का पालन न करने पर गृह मंत्री को चालान कर सकता है? विपक्ष के नेताओं के रोड शो का भी यही हाल है. लेकिन जिनके मंत्रालय का दायित्व देश भर में आपदा प्रबंधन एक्ट लागू करने का है उनके मंत्री इस तरह से नियमों का पालन कर रहे हैं जैसे कोई नियम ही न हो.

चुनाव आयोग के निर्देशों में तो यह भी लिखा है कि कोविड के नियमों का पालन न करने पर आपदा प्रबंधन कानून के आर्टिकल 51 से 60 के तहत सज़ा होगी. क्या आप जानते हैं कि कितनी सज़ा है? एक साल तक की जेल हो सकती है. जुर्माना अलग से. कुछ मामलों में दो साल तक की जेल हो सकती है. जब इन नियमों का पालन नहीं होता है या नहीं हो सकता है तो चुनाव आयोग इनके जारी करने इनके बनाने पर अपना समय क्यों बर्बाद करता है. 26 फऱवरी को बंगाल में कुल 3,343 केस थे, 5 अप्रैल तक 11,446 एक्टिव केस हो चुके हैं. सोमवार को 1957 केस आए थे. कोविड के नए मामलों की संख्या बंगाल में तेज़ी से बढ़ रही है.

लोगों ने भी अपनी तरफ से कम योगदान नहीं किया है. जानते हुए कि कोरोना फैलेगा तो नौकरियां फिर से जाएंगी. सैलरी और कमाई कम हो जाएगी लेकिन ज़िम्मेदारी तो सरकार की है कि लापरवाही न बहाल हो. एक साल बीत चुका है. एक तरफ रैलियों और क्रिकेट स्टेडियम में भीड़ के आने की छूट दी जा रही है तो दूसरी तरफ मास्क न पहनने पर आम लोगों से करोड़ों रुपये वसूले जा रहे हैं.

गुजरात में एक साल के दौरान 28 लाख लोगों का चालान हुआ है और 161 करोड़ की राशि वसूली गई है. अहमदाबाद में गुजरात पुलिस ने 36 करोड़ का जुर्माना वसूला है. मुंबई में भी 2 अप्रैल तक  BMC ने 50 करोड़ का जुर्माना वसूला है. बंगलुरू नगरपालिका ने पिछली मई से लेकर अब तक क़रीब 4 लाख लोगों को फाइन किया है और 9.3 करोड़ रुपये वसूले हैं. दिल्ली के लोगों से इस साल मार्च के चार दिनौं में ही 3.18 करोड़ रुपए वसूले गए हैं.

हमारे पास पूरे देश का डेटा नहीं है कि मास्क न पहनने पर भारत में कितने करोड़ लोगों को फाइन किया गया है और उनसे कितने पैसे वसूले गए हैं. विक्रम सिंह दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है कि चुनाव आयोग ने अपने नोटिफिकेशन में कहा है कि हर किसी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा लेकिन न तो समर्थक मास्क पहनते हैं और न नेता. ऐसे लोगों को चुनाव प्रक्रिया से लंबे समय के लिए बाहर कर देना चाहिए. 30 अप्रैल को सुनवाई है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो कहा है कि सार्वजनिक जगहों पर जो बिना मास्क के दिखेगा उसे खुली जेल में रखा जाएगा और जुर्माना भी लगेगा. इसके लिए इंदौर में गुजराती अतिथि गृह को अस्थायी कारागर परिसर में बदल दिया है. I not kiddig, स्नेहलतागंज के इस गुजराती अतिथि गृह पर इतना स्नेह करने की क्या ज़रूरत थी? कोई बुरा मान गया तो? खैर इस अस्थायी कारागार परिसर में उन लोगों को कुछ घंटे के लिए रखा जाता है जो सार्वजनिक जगहों पर बिना मास्क के पकड़े जाते हैं. पांच दिनों के भीतर 250 लोगों को इस अस्थायी जेल में सेवा प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. आप देख रहे हैं कि जुर्माने के नाम पर राज्य किस तरह से नागरिक के अधिकारों का अतिक्रमण कर रहा है. यही नियम बंगाल और असम और केरल में लागू होते तो रैलियों में आने वाले करोड़ों लोग अस्थायी जेल में होते. ज़रूर सरकार के सामने चुनौती है कि लोग मास्क पहनें, लोग नहीं पहन रहे हैं लेकिन वही नेता और वही सरकारें देश के दूसरे हिस्से में जब कोविड के नियमों का पालन नहीं करती हैं तब फिर फाइन और जेल भेजने का आदेश मज़ाक लगता है. 

जेल और दंड के बिना तो हमारी सरकारी कल्पनाएं स्टार्ट ही नहीं होती हैं.लगता है लोग भी आज़माते हैं कि पुलिस पकड़ती है कि नहीं. सरकार के लिए भी कम मुश्किल नहीं है. कोविड महामारी के शुरू में ही कहा गया कि यह महामारी जाने वाली नहीं है. हमें इसके साथ जीने का तरीका सीखना होगा. लेकिन सीखने के नाम पर फैसलों में अंतर्विरोध दिखता है और व्यवस्था के नाम पर अव्यवस्था और अराजकता दिख रही है. नेता हर समय लोकप्रिय बने रहने या जनता की निगाह में रहने का आइडिया खोज रहे हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वास्थ्य-आग्रह शुरू कर दिया है. सत्याग्रह की तुकबंदी लगती है स्वास्थ्य आग्रह.

सत्य का बोझ अनावश्यक न बढ़ जाए इसलिए मिलता-जुलता रखा गया है. स्वास्थ्य आग्रह. लेकिन इस आग्रह से सत्याग्रह की ही याद आती है. न याद आए तो गांधी जी की तस्वीर देखकर तो आ ही जाएगी. पोस्टर पर एक किनारे पर प्रधानमंत्री मोदी हैं तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. वैसे गांधी अगर सत्याग्रह करते तो मंच के पीछे अपनी तस्वीर तो कत्तई न लगाते. मगर ईवेंट मैनेजर से यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वे सत्याग्रह पर गांधी के विचार पढ़ कर आएंगे. सत्याग्रह भी एक इवेंट आइटम हो गया है. स्वास्थ्य-आग्रह उसका नया वर्ज़न है. अभी तो बांग्लादेश की आज़ादी के लिए सत्याग्रह करने वाले बयान की सत्यता की खोज हो ही रही थी कि ये एक नया आग्रह लांच हो गया. एक साल पहले से सरकार मास्क को लेकर सक्रिय रहती तो स्वास्थ्य सत्याग्रह पर बैठने के लिए टाइम नहीं निकालना पड़ता. 

मध्य प्रदेश में जब उप चुनाव हुए तो आपने देखा था कि कितनी रिपोर्ट आईं कि रैलियों में समर्थक और नेता मास्क पहनने और दो गज की दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. क्या इस सत्याग्रह में उन गलतियों को लेकर प्रायश्चित किया जा रहा है? एक तरफ असम के बीजेपी नेता हिमंता बिस्वा सरमा कहते हैं कोरोना नहीं है दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मास्क के लिए सत्याग्रह कर रहे हैं. एक तरफ प्रधानमंत्री की रैलियों में आने वाली भीड़ मास्क में नहीं है, कोई चालान नहीं है, दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान सत्याग्रह कर रहे हैं. क्या होगा अगर जनता स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग को लेकर स्वास्थ्य-आग्रह करने लग जाए तब यही सरकार उन्हें खदेड़ देगी. 

भारत भर में कोविड की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. हर दिन एक लाख से अधिक मामले आ रहे हैं. अब तो मरने वालों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ने लगी है. पिछले 24 घंटे में 446 लोगों की मौत हो गई है. लोगों की आर्थिक ज़िंदगी तबाह हो रही है. रोज़गार तबाह हो रहे हैं. अमरीका तो है नहीं कि सरकार खाते में एक लाख रुपये डाल देगी. यहां जिनकी नौकरी गई है उन्हें किसी प्रकार की मदद नहीं मिली है न ही लोगों ने मांगा है.

बिहार के सासाराम में जब अधिकारी प्रेमचंद पथ गौरक्षणि पर चल रहे कोचिंग संस्थानों को बंद कराने पहुंचे तो छात्रों और शिक्षकों ने मिलकर पथराव शुरू कर दिया. इस जन विद्रोह को समझना होगा. जब प्रतियोगिता परीक्षाएं अपने समय से हो रही हैं तब कोचिंग कैसे बंद हो सकते हैं. देश के हर राज्य में और हर छात्र के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है. उसके पास लैपटाप नहीं है कि वह घर बैठ कर कोचिंग कर ले. उसके इन सवालों का समाधान नहीं किया गया. बस बंद के आदेश जारी कर उसके हाल पर छोड़ दिया गया है. बिहार सरकार ने कोविड-19 को लेकर 12 अप्रैल तक के लिए स्कूल कालेज और कोचिंग संस्थान बंद कर दिए हैं. इसके विरोध में ज़िलों में जगह जगह प्रदर्शन हो रहे हैं. मुज़फ्फरपुर में ज़िला समाहरणालय परिसर में इंडियन प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के बैनर तले स्कूल संचालको ने धरना दिया. संचालकों का कहना है कि निजी स्कूल संचालकों की हालत बदतर हो गई है. 1 साल तक स्कूल बंद थे फिर कुछ दिन खुले तो एक बार फिर बंद करने का आदेश दे दिया गया है. सरकार को रोज़गार की कोई चिन्ता नहीं है. स्कूल के शिक्षक और कोचिंग स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की हालत खराब है. उनकी कमाई बंद हो गई है. इनकी मांग है कि जिस तरह सरकार सरकारी विद्यालय के शिक्षकों व कर्मचारियों को बंदी मे सैलरी दी गई है उसी तरह निजी विद्यालय और कोचिंग संचालकों व शिक्षकों के लिए कोई रोडमैप तैयार किया जाए. वहीं खगड़िया में सरकार के आदेश के बाद भी अधिकांश निजी स्कूल और कोचिंग संस्थान खुले रहे. स्टूडेंट भी बड़ी संख्या में विद्यालय आये.

स्कूल चलाने वालों का कहना है कि कोरोना महामारी के बीच चुनाव हो सकते हैं. राजनेता की रैली में लाखों की भीड़ जुट सकती है. स्कूल कालेज क्यों बंद रहेंगे. लोगों के सामने यह उदाहरण तो चुनाव आयोग और सरकारों और राजनीतिक दलों ने पेश किया है. इस एक साल में हमें वैकल्पि व्यवस्थाओं पर गंभीरता से काम करना था लेकिन छोटी मोटी कामयाबी खोज कर प्रचार में ही वक्त निकल गया. बिहार के प्राइवेट स्कूल संघ के लोग कह रहे हैं कि जेल जाएंगे लेकिन स्कूल बंद नहीं करेंगे.

जैसे ही केस कम होते हैं सरकार से लेकर जनता दोनों की लापरवाही देखने लायक होती है. महाराष्ट्र में कोरोना तेज़ी से फैला है. राज्य में शुक्रवार रात से सोमवार सुबह सात बजे तक सब कुछ बंद होगा. अनिवार्य सेवाओं को छोड़ कर होटल ढाबे सब बंद रहेंगे. लाखों मज़दूर इन ढाबों पर खाते हैं. शनिवार और रविवार को ढाबे बंद रहेंगे तो खाएंगे क्या. इस तरह के फैसले लिए जा रहे हैं. 

इस बार तालाबंदी धड़ाम से नहीं आ रही है. कुछ दिन और दिन के कुछ हिस्सों को बंद रखा जा रहा है. दिल्ली में 30 अप्रैल तक के लिए नाईट कर्फ्यू लगाया गया है. रात दस बजे से लेकर सुबह पांच बजे तक दस बजे के बाद हर किसी को बाहर घूमने की इजाज़त नहीं होगी. इसका मतलब है होटल इंडस्ट्री को फिर झटका लगेगा. अब कोई ग्राहक सात बजे तो जाएगा नहीं कि आठ बजे तक खा कर निकल जाना है वर्ना घर पहुंचने में दस बज जाएंगे.

अनिवार्य सरकारी सेवाओं से जुड़े लोगों को नाईट कर्फ्यू से बाहर रखा गया है. एयरपोर्ट और स्टेशन जाने वाले टिकट दिखा कर जा सकते हैं. उन्हें एयरपोर्ट से लाने वाले भी उसी टिकट को दिखा कर जा सकेंगे पता नहीं. अन्य राज्यों से आ रहे जरूरी और गैर जरूरी सामानों के आवागमन पर पाबंदी नहीं रहेगी. इनके लिए किसी तरह का ई-पास जरूरी नहीं होगा. 

लेकिन इनके लिए जरूरी होगी ई-पास की सॉफ्ट या हार्ड कॉपी रखनी होगी.
- राशन, किराना, फल-सब्जी, दूध, मीट-मछली, पशुओं के खाने की दुकानें, दवा दुकानें
- बैंक, इंश्योरेंस ऑफिस, एटीएम 
- प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया 
- इंटरनेट सर्विस, आईटी ब्रॉडकास्टिंग और केबल से जुड़े लोग, 
- खाने और दवा जैसी सभी जरूरी सामानों की ई-कॉमर्स डिलीवरी
- पैट्रोल पंप एलपीजी सीएनजी और इसके रिटेल आउटलेट
- प्राइवेट सिक्योरिटी सर्विस और सभी जरूरी सामानों की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट
- कोरोना वैक्सीन लगवाने जा रहे लोग 

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आप दिल्ली सरकार की वेबसाइट www.delhi.gov.in पर जाकर पास के लिए आवेदन कर सकते हैं. ई-पास जिला प्रशासन भी जारी कर सकता है. कहा गया है कि जो निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, उनके खिलाफ DDMA एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी. कोरना से 1 लाख 66 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई है. आप इसे न तब हल्के में ले सकते हैं और न अब.